मेरी कविताएं
Friday, January 24, 2014
राह
मैं आंखें खोलकर चल लूं
तुम आंखें खोलकर देखो
मुझे जो भी मिले रस्ता
मिले राही मगर देखो
नहीं गन्तव्य
से मतलब
नहीं पहुंचूं नहीं चिंता
मैं इतना सोच सकता हूँ
स्वयं हित छोड़ कर देखो
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Saturday, January 18, 2014
समय
नमक तेल मसाले
डीज़ल पेट्रोल गैस
आलू प्याज़ टमाटर
लकड़ी कोयला कपड़ा
सभी हो रहे हैं महंगे
और
सस्ते हो रहे हैं
सम्बन्ध
व
मौत के कारण
सस्ती हो गयी है
मौत
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Thursday, January 16, 2014
मंजिल
हर नयी मंजिल मुझे
शुरुआत लगती है
बीत जाने पर
सुबह सी रात लगती है
मन्त्र चलना फिर संभलना
यदि अटकना फिर संभलना
सोंचता हूँ अब
सुलभ यह बात लगती है
(Every new achieved aim looks like a new beginning as every passed night gives a fresh morning. So be effortful and alert and if you face obstacles try overcoming them. This is what I think is a better way to lead life.)
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