Saturday, June 21, 2014

फूल और मिट्टी

घर में फूल
फूलों में घर 
फूलों की खुशबू 
खुशबू के फूल
फूलों से रिश्ते
रिश्तों से फूल 
रिश्तों सी शाखाये 
शाखाओं से रिश्ते

लकड़ी पर कन्धा
कंधे पर लकड़ी
जड़ों से पेड़
पेड़ों से जड़ 
मट्टी में जड़
जड़ में मिट्टी 
मिट्टी में बीज 
बीज से जड़
जड़ से पौधा 
पौधे से फल-फूल 
पौधे से पेड़
पेड़ से फल-फूल 
पेड़-पौधों से लकड़ी 
लकड़ी से आग
आग से मिट्टी

मिट्टी का मानव
मानव की मिट्टी

फूलों से कीट
कीट से फूल
फूलों से बगिया
बगिया से फूल
फूलों से रंग
रंगों से फूल
फूलों से शूल
शूलों से फूल

पानी में मिट्टी
मिट्टी में पानी
पानी के बादल
बादल से पानी
पानी से मिट्टी

मिट्टी का मानव
मानव की मिट्टी

Friday, June 6, 2014

आभास

कबूतरों और बन्दरों
गोर्रैयों और गिलहरियों
चूहों और छछुन्दरों
के जहाँ थे आवास
वहां मानव से दीखते
जानवरों ने
किया है अतिक्रमण
बना लिए हैं
सुन्दर से दिखने वाले
अपने आवास

घुस गए हैं उनके
घरों में
घोसलों में
बिलों में
अपने शक्ति व
धन बल से
ज्ञान बल की अनुपस्थिति में
या
होते हुए भी
उसका प्रयोग किये बिना

मानव
करने लगा है व्यवहार
इन सभी पक्षियों
व जानवरों की तरह

अब देखना है
कब पक्षी व जानवर
करेंगे
मानव सा व्यवहार
और
अपने शक्ति व ज्ञान बल से
कर देंगे बेदखल
इन मानव से दीखते
जानवरों को
अपने आवासों से

मेरा आभास

मेरा आवास

Sunday, June 1, 2014

अर्थ

व्यर्थ है
सचमुच व्यर्थ है
अर्थ
अर्थ से होता है
अनर्थ
और
जब हम ढूँढते हैं
संबंधों का अर्थ
तो अर्थ ही है
जो व्यर्थ लगता है
जब अर्थ के लिए
हम सब छोड़ते हैं घर
फिर कुछ नहीं बचता
अर्थ के सिवाय
और
फिर भी हम सब
ढूँढते रहते हैं अर्थ
शब्दों के...

====================
उपरोक्त पंक्तियों को लिखने की प्रेरणा प्रो माधवेन्द्र पाण्डेय जी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (10 मई 2014) के दिन फेसबुक वाल पर प्रकाशित निम्न पंक्तियाँ पड़ने पर हुई

कितनी दूर आ गया कि,
माँ के चेहरे की लकीरें भी ठीक से याद नहीं,
कैसे कहूँ ...हैप्पी मदर्स डे |

सुबह बात करते समय 
बेतरह खाँस रही थी माँ,
कैसे कहूँ सब ठीक है,
तेज धूप और फनफनाती लू में
चिलक रही है माँ की आँखें
तब इतनी शीतलता का क्या होगा
यहाँ शिलाँग में,
जब चलने फिरने में इतनी दिक्कत,
आने जाने में इतनी पीड़ा 
तो व्यर्थ है सब घोड़ागाड़ी,
कार,बंगला ...सब व्यर्थ है |