मेरी कविताएं
Wednesday, September 24, 2014
यात्रा
मैं चलकर सोचता हूँ
सोचकर चलता नहीं हूँ अब
मेरी यात्रा में शामिल
मित्र दुश्मन भाई बंधु सब
मेरी भाषा संभल जाए
मेरा हर पग संभल जाए
बस इतना सोचता हूँ
अब चलूँ सोचूं विचारू सब
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Thursday, September 11, 2014
आशय
नियम क़ानून अनुशासन
सभी अपवाद लगते हैं
जो आशय हो सही संगत
सही संवाद सजते हैं
मेरा दर्शन मेरे मित्रों को
क्यों कल्पित ही लगता है
बस इतना सोचता हूँ
क्यों नहीं संवाद करते हैं
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