मेरी कविताएं
Monday, November 3, 2014
हार-जीत
मैं लड़कर जीतता हूँ
जीतकर लड़ता नहीं हूँ अब
खड़ा हो सोचता हूँ
भीगकर पढता नहीं हूँ अब
अजब सी जीत है
सांसत में अक्सर छोड़ देती है
मैं इतना सोचता हूँ
हार मे ही जीतते हैं सब
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