मेरी कविताएं
Tuesday, April 21, 2015
दिशा 2
हवा के रुख को देखा
और धुंआ बढनें लगा आगे
दिशा का ज्ञान भूला
शान से चलने लगा आगे
हवा ले चल उडी
गंतव्य अपना दे दिया उसको
मैं हँसता सोचता हूँ
हवा-धुएं में बंध गए धागे
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Monday, April 13, 2015
दिशा
मैं घर के द्वार पर बैठा
हवा से बात करता हूँ
लगाकर नाक पत्ती फूल
खुशबू साथ पढता हूँ
ये हिलते पेड़ उडते पक्षी
बहता जल खुला अम्बर
मैं इतना सोचता हूँ
क्यों दिशा की बात करता हूँ
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