तीस्ता के सहारे
तीस्ता नहीं छोड़ती है साथ,
अपनी गति, गन्तव्य व गहनता को
पोटली में बांधे
समय, काल व परिस्थिति के साथ
करते समझौता,
मानव छेड़खानी से जूझते,
बांधों से टकराते,
अपना रास्ता स्वयं बनाते,
तीस्ता चली जा रही है।
पत्थरों के साथ लुड़कती,
देश-देशान्तर की
परिकल्पना के विरुद्ध,
तीस्ता चली जा रही है।
कटाव, रिसाव, व झुकाव से
जन्म लेते विकास की गति को
अपने कन्धों पर ढोते
तीस्ता चली जा रही है।
सड़क के चौड़ा होने से
अवरुद्ध अवश्य होती है
उसकी गति,
परंतु
अपने सेवा भाव में सराबोर
उसका व्यक्तित्व
सब कुछ सहने को
तैयार दीखता है,
परंतु कब तक।
कब तक,
आखिर कब तक
हम अपने हितों के लिए
उसकी गति को
अवरुद्ध करते रहेंगे,
बनाते रहेंगे
बाँध व सड़कें,
चकाचौंध करने वाली
रोशनी के लिए।
चले जा रहे हैं,
दायें-बाहें, ऊँचे-नीचे,
पहाड़ों पर।
दायें-बाहें, ऊँचे-नीचे,
पहाड़ों पर।
तीस्ता नहीं छोड़ती है साथ,
अपनी गति, गन्तव्य व गहनता को
पोटली में बांधे
समय, काल व परिस्थिति के साथ
करते समझौता,
मानव छेड़खानी से जूझते,
बांधों से टकराते,
अपना रास्ता स्वयं बनाते,
तीस्ता चली जा रही है।
पत्थरों के साथ लुड़कती,
देश-देशान्तर की
परिकल्पना के विरुद्ध,
तीस्ता चली जा रही है।
कटाव, रिसाव, व झुकाव से
जन्म लेते विकास की गति को
अपने कन्धों पर ढोते
तीस्ता चली जा रही है।
सड़क के चौड़ा होने से
अवरुद्ध अवश्य होती है
उसकी गति,
परंतु
अपने सेवा भाव में सराबोर
उसका व्यक्तित्व
सब कुछ सहने को
तैयार दीखता है,
परंतु कब तक।
कब तक,
आखिर कब तक
हम अपने हितों के लिए
उसकी गति को
अवरुद्ध करते रहेंगे,
बनाते रहेंगे
बाँध व सड़कें,
चकाचौंध करने वाली
रोशनी के लिए।
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[सिलीगुड़ी से गंगटोक के रास्ते पर तीस्ता के भिन्न रूपों को देख कर निकली यह पंक्तियाँ, 26 अप्रैल 2016, Mayfair hotel n resort, Gangtok, 6:50 pm, room #523]
[सिलीगुड़ी से गंगटोक के रास्ते पर तीस्ता के भिन्न रूपों को देख कर निकली यह पंक्तियाँ, 26 अप्रैल 2016, Mayfair hotel n resort, Gangtok, 6:50 pm, room #523]