उनके रोने की आवाज
और आंसुओं का बहना
मैं सुन व देख रही हूँ
इस अंधकार में
दिनकर उन्हें प्रकाश देते हैं
अपने नाम को चरितार्थ करते हुए
और उनके आँसू
उसकी अभिव्यक्ति है
हम दोनों अलग नहीं हैं
पापा और मैं
हो सकता है अलग हों
हमारे एक दूसरे से
बात करने के तरीके
हमारे माध्यम
क्योंकि हमारी आसक्ति
उन माध्यमों में है
परंतु यह सब
नहीं करता है
अलग हम दोनों को
हमारी आसक्ति, हमारा अनुराग
किसी भी भाषा से परे है
मैं सोचती हूँ
उनकी आँखों के गीले होने के बारे में
उन अश्रुओं के बारे में
जिनका कारण
दिनकर द्वारा रचित
ओज से भरपूर पंक्तियाँ हैं
मुझे रुलाते हैं ईलियट
और वर्जीनिया वुल्फ़
जिस पर सतत् मुस्कराते हैं
रूमी
हम दोनों अलग नहीं हैं
पापा और मैं
हमारा अपना पागलपन है
और उसको हम साझा करते हैं
उस पुरानी किताब की तरह
जिसके प्रष्ठ होते हैं बहुत नाज़ुक
पीले-काले
भीनी-भीनी खुशबू बाले
हजारों-लाखों तरीकों से हम बातचीत करते हैं
शब्द-जाल से परे
शब्द, जो अपने
उपयोग, प्रयोग, व दुरुपयोग की
करते रहते हैं, प्रतीक्षा
एक कोने में बैठकर
सारे अन्तरों को पार करते हुए
और आंसुओं का बहना
मैं सुन व देख रही हूँ
इस अंधकार में
दिनकर उन्हें प्रकाश देते हैं
अपने नाम को चरितार्थ करते हुए
और उनके आँसू
उसकी अभिव्यक्ति है
हम दोनों अलग नहीं हैं
पापा और मैं
हो सकता है अलग हों
हमारे एक दूसरे से
बात करने के तरीके
हमारे माध्यम
क्योंकि हमारी आसक्ति
उन माध्यमों में है
परंतु यह सब
नहीं करता है
अलग हम दोनों को
हमारी आसक्ति, हमारा अनुराग
किसी भी भाषा से परे है
मैं सोचती हूँ
उनकी आँखों के गीले होने के बारे में
उन अश्रुओं के बारे में
जिनका कारण
दिनकर द्वारा रचित
ओज से भरपूर पंक्तियाँ हैं
मुझे रुलाते हैं ईलियट
और वर्जीनिया वुल्फ़
जिस पर सतत् मुस्कराते हैं
रूमी
हम दोनों अलग नहीं हैं
पापा और मैं
हमारा अपना पागलपन है
और उसको हम साझा करते हैं
उस पुरानी किताब की तरह
जिसके प्रष्ठ होते हैं बहुत नाज़ुक
पीले-काले
भीनी-भीनी खुशबू बाले
हजारों-लाखों तरीकों से हम बातचीत करते हैं
शब्द-जाल से परे
शब्द, जो अपने
उपयोग, प्रयोग, व दुरुपयोग की
करते रहते हैं, प्रतीक्षा
एक कोने में बैठकर
सारे अन्तरों को पार करते हुए
भाषा के सभी समंदरों के पार
जैसे यह सारे कवि
रूमी, इलियट और रवि (दिनकर)
बना देते हैं
सूखे समंदर
हमारे गालों पर
और हम कर देते हैं
आत्मसमर्पण
उनके समक्ष
उन्हे प्रदान कर देते हैं अनुमति
हमको उस पीड़ा को देने की
जो आनंददायक है
सभी आँसू बुरे नहीं होते
कई बार वे होते हैं
हमारी प्रेरणा
और बन जाते हैं
अभिव्यक्ति
हमारी आनंददायक अनुभूति की ।
जैसे यह सारे कवि
रूमी, इलियट और रवि (दिनकर)
बना देते हैं
सूखे समंदर
हमारे गालों पर
और हम कर देते हैं
आत्मसमर्पण
उनके समक्ष
उन्हे प्रदान कर देते हैं अनुमति
हमको उस पीड़ा को देने की
जो आनंददायक है
सभी आँसू बुरे नहीं होते
कई बार वे होते हैं
हमारी प्रेरणा
और बन जाते हैं
अभिव्यक्ति
हमारी आनंददायक अनुभूति की ।
[उपरोक्त पंक्तियाँ, निम्नलिखित कविता का हिन्दी अनुवाद हैं। निम्नलिखित कविता एक बेटी का पिता की आँखों में आँसू (जो दिनकर की पंक्तियों को पढ़ने से उत्पन्न हुए) देखकर मिली प्रेरणा की परिणति]
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dear Dinkar, thank you...
I hear him weep
Dinkar lives up to his name
in the dark air of the present
I hear him weep
my father
we're not too different, my
father and I
separated perhaps by
an attachment to
a mode of communication -
language - is
the least reliable.
I think of his weeping
of the tears that Dinkar gives birth to
of the way the words clench my father's heart -
clench and cling on to
I think of my weeping
of the tears that Eliot gave birth to
of the crying that Rumi smiles back at -
smiles and constantly sticks to
we're not too different
my father and I,
we have our madness - and
we share it like an ancient
copy of a book
with all its yellow
all its smell
and all its fragility
In a million ways we communicate
while words wait in a corner to be used
consumed, and misused. but look
at how we defeat all 'gaps'
all barriers of language
as these poets feed off
the salt etched on our skin
and we present to them
our bare naked selves
with red hearts in our hands
and like Woolf, we yell
"consume me"