मेरी कविताएं
Wednesday, February 9, 2022
बाज़ार
हम सभी, कुछ बेचकर जीते हैं, मर जाते हैं
बोझ ढ़ोते हैं, थकते हैं और सो जाते हैं
कलम चलती है, रक़म आती है, चली जाती है
इसी बाज़ार में रहते हैं, नहीं घर जाते हैं
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