Tuesday, November 2, 2010

तुम और मैं

मैं क्यों भूल जाता हूँ
तुम्हारे स्नेह की भाषा
            प्यार की परिभाषा
            आलिंगन का आशय
तुम्हारे शरीर का स्पर्श
            स्पर्श का आकार, प्रकार
            स्पर्श की ऊर्जा
तुम्हारे पैरों की आहट
            आँखों का आमंत्रण           
            आँखों के स्वप्न
            स्वप्नों की उडान
और
तुम्हारे कृत्यों की सीमा
मैं भूल जाता हूँ
क्यों?
...
मैं भूल जाता हूँ
और
फिर भी चाहता हूँ
तुमको स्मरण रहे
तुम ना भूलो
           मेरा प्यार
           मेरी परिभाषाएं
           मेरा आलिंगन व उसका आशय
           मेरा स्पर्श
           मेरी आहट
           मेरी उडान
           मेरी सीमा
मुझको...
...
तुम
तुम हो
और
मैं
मैं
क्यों भूल जाता हूँ मैं....
(Shillong...L-57...2nd Nov 2010...9 AM)

7 comments:

  1. अच्छी लगी यह कविता।

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  2. क्या बात है वाह...कमाल की रचना...बधाई...

    नीरज

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना है...।
    एक निवेदन है...आलिंघन शब्द में घ को ग कर लीजिए।

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  4. धन्यवाद महेंद्र जी.... घ को ग कर दिया है.... क्षमा.. कंप्यूटर की दुनिया मे अक्षरों को तलाशना कई बार मुश्किल हो जाता है....

    विजय

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  5. बहुत सुन्दर! बेहतरीन !
    आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामना!

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  6. बार बार पढने का मन कर रहा है!

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