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मैं सूरज को बुलाता हूँ मुझे जब सांझ लगती है
मगर सब शुष्क मूल्यों सी धरा भी बाँझ लगती है
अजब मौसम गजब वर्षा अजब गर्मी गजब सर्दी
मैं इतना सोच सकता हूँ मुझे क्यों सांझ लगती है
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मुझे जंगल सुहाता है सभी को खग बताता है
मगर फिर भी पहन कपडे आदमी कह्कहता है
जनम से जानवर होकर मनन से जानवर होकर
मैं इतना सोच सकता हूँ क्यों हर पशु सर झुकाता है
46
मैं सबसे प्रेम करता हूँ मुझे स्नेह भाता है
नहीं कोई मेरा दुश्मन सभी से अच्छा नाता है
सही हों पग सही हो पथ सही गन्तव्य सही जो जग
मैं इतना सोच सकता हूँ मुझे जीवन सुहाता है
18.7.12 Shillong
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