मेरी कविताएं
Thursday, March 21, 2013
रिश्ते
67
मुझे गीता बताती है नहीं कुछ साथ जाता है
मगर फिर क्यों मुझे केवल स्व परिवार भाता है
मेरी पूंजी मेरे रिश्ते तेरे रिश्ते तेरी पूंजी
मैं इतना सोच सकता हूँ तेरा मेरा रुलाता है
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1 comment:
दिगम्बर नासवा
March 24, 2013 at 1:48 PM
सच कहा है ... स्व से बहर नहीं आ पाता इंसान ...
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सच कहा है ... स्व से बहर नहीं आ पाता इंसान ...
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