Wednesday, October 23, 2013

कुर्सी

कुर्सी
प्रतीक्षा में है
कोई आये
और
उसको अपनाये
अपने सपनो से कहीं अधिक
अपनी भूख से परे
अपनी सीमाओं में रहकर।

अप्रत्याशित
अस्वभाविक
असहनीय
वेदना में लिप्त
कुर्सी
प्रतीक्षा में है।

क्या नहीं देखा
अनुभव किया
इस कुर्सी ने
विभिन्न व्यक्तियों का सानिग्ध
उनका व्यक्तित्व
उनकी भाषा विचार व्यवहार
क्या-क्या नहीं सहा
इस कुर्सी ने
प्रज्ञा प्रबोध व पीड़ा
प्रमोद प्रसाद व परिवाद।

कुर्सी को ज्ञात है
उसका अस्तित्व
उसके हत्थों पर रखे
मजबूत हाथो से है
उसके जमे हुए पाओं से है
उसके नुकीले काँटों पर
निस्वार्थ
निर्विवाद
व निष्पक्ष भावना से लिए
निर्णयों में है
उसका अस्तित्व
निर्भीक व्यक्तित्व से है।

कुर्सी का अस्तित्व कदापि नहीं है
उसकी लकड़ी
या वनावट से
उसपर लगी दीमक से
उसकी पूजा करने वालों से
उस पर की गई पॉलिश से
या
पोंलिश करने वालों से
उसके सेवादारों से
उस पर भिऩकने वाली मक्खियों से।

कुर्सी
प्रतीक्षा में है
कोई आये
संभाले व सजाये
मेरी शोभा बढ़ाए
काँटों की पीड़ा से परे
फूलों की सेज सजाये
कोई आये
अपने व्यक्तित्व की खुशबू से
वातावरण को महकाए
नई ऊर्जा को जन्म दे
संस्थान को चमकाए
कोई आए
कोई आए
कुर्सी
प्रतीक्षा में है। 

Sunday, October 13, 2013

हाथ

हाथ की उँगलियाँ बताती हैं
साथ रहना बहार करता है
इक हथेली है बाँध लेती है 
रक्त गिरकर दरार करता है
हाथ मुट्ठी है हस्त-रेखा है 
ज्ञान मिट्टी है पस्त देखा है
सोच सकता हूँ बस यही अब मैं 
हाथ ताली से वार करता है
===================