क्या सोचता होगा
बेचारा मोबाइल
सुनता है सबकी कहानी
उसको संप्रेषित करता है
चुन लिए गए लोगो को
मोबाइल पहचानता है
उसके मालिक के
विभिन्न रूपों को
मालिक की
हर क्षण परिवर्तित
भाषा व शैली
भाव व बोली
मोबाइल परेशान होता है
कभी-कभी हँसता है
जोर से
कभी-कभी क्रुद्ध होता है
सर पीटता है
मालिक को गाली देता है
मालिक की
निष्ठा के क्षणिक बदलाव पर
चुप रहता है
(बोलने की
प्रबल इच्छा होते हुए भी)
मोबाइल
लड़ाई का कारण बनता है
लड़ाइयों को कई बार
समाप्त भी करवाता है
कितनी ही बार झूठ सहता है
बहानों को संजोता है
दोस्त और दुश्मनों को
अपने में सुरक्षित करता है
अट्टहासों पर रोता है
बेबुनियाद अश्रुओं पर हँसता है
मोबाइल का
चेतन व अवचेतन एक है
किसी भी भेद से परे
नेटवर्क होते हुए भी
नेटवर्क न होने का बहाना
घर में होते हुए
बाहर होने का बहाना
मीटिंग में न होते हुए भी
मीटिंग में होने का बहाना
आदि इत्यादि
न जाने कितने
सच दिखने वाले झूठ
सहता है
मोबाइल फिर भी
नहीं रखता है
अपने मालिक को
अपने स्पर्श से बंचित
उसकी परम श्रद्धा पूज्यनीय है
वन्दन योग्य है
मैंने कई मनुष्यों को देखा है
मोबाइल की भांति
करते व्यवहार
मोबाइल की भांति
करते स्वीकार
सत्य-असत्य
सब
मोबाइल की भांति
करते ग्रहण सबकुछ
अपनी परम श्रद्धा
व विश्वास
अपने मालिक के प्रति
क्या हम कुछ
पूर्ण अथवा आंशिक रूप से
सीख सकते है
इस सीधे-साधे-सच्चे
मोबाइल से