जैसा दीखता है
वैसा होता नहीं है
व्यक्ति
व्यवस्था
व्यथा
वो जैसे दीखते हैं
उनको पता है
वैसे नहीं हैं वे
जैसे भी हैं वे
वैसे दीखते नहीं है
कई बार
रुके हुए
चलते दीखते हैं
कई बार
चलते हुए
रुके हुए
दिखाई देते हैं
व्यवस्था अच्छी दीखती है
अच्छी न होते हुए भी
या फिर व्यवस्था
अच्छी नहीं दीखती है
क्योंकि
हमारे पूर्वाग्रह
हमें वह दिखाते हैं
जो हम देखना चाहते हैं
स्वस्थ दीखने वाला व्यक्ति
आंतरिक रूप से
कितना अस्वस्थ होता है
नहीं दीखता है हमें
एक प्रश्न
क्या
व्यक्ति
व्यवस्था, व
व्यथा
हमको ख़राब
या
अच्छी दीखता
या दीखती है
क्योंकि हम उसको
वैसा देखते हैं
जैसा देखना चाहते हैं
हमारा चाहना ही तो
हमारा चश्मा होता है
जिसे हम प्रायः
अपनी सुविधानुसार
पहनते
या बदलते हैं
यह कोई दृष्टिभ्रम नहीं होता.
वैसा होता नहीं है
व्यक्ति
व्यवस्था
व्यथा
वो जैसे दीखते हैं
उनको पता है
वैसे नहीं हैं वे
जैसे भी हैं वे
वैसे दीखते नहीं है
कई बार
रुके हुए
चलते दीखते हैं
कई बार
चलते हुए
रुके हुए
दिखाई देते हैं
व्यवस्था अच्छी दीखती है
अच्छी न होते हुए भी
या फिर व्यवस्था
अच्छी नहीं दीखती है
क्योंकि
हमारे पूर्वाग्रह
हमें वह दिखाते हैं
जो हम देखना चाहते हैं
स्वस्थ दीखने वाला व्यक्ति
आंतरिक रूप से
कितना अस्वस्थ होता है
नहीं दीखता है हमें
एक प्रश्न
क्या
व्यक्ति
व्यवस्था, व
व्यथा
हमको ख़राब
या
अच्छी दीखता
या दीखती है
क्योंकि हम उसको
वैसा देखते हैं
जैसा देखना चाहते हैं
हमारा चाहना ही तो
हमारा चश्मा होता है
जिसे हम प्रायः
अपनी सुविधानुसार
पहनते
या बदलते हैं
यह कोई दृष्टिभ्रम नहीं होता.
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