मेरी कविताएं
Monday, December 9, 2013
कपड़े
मैं कपड़ो को पहनता हूँ
मुझे
कपड़े
पहनते हैं
बदन का आवरण बन
वेदना को पंख देते हैं
कहाँ संकट कहाँ पीड़ा
कहाँ संचय कहाँ संशय
मैं इतना सोच सकता हूँ
कि क्यों
कपड़े
बदलते हैं
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