हताश से दीख रहे हैं
ये हरे पेड़
बनती देख बिल्डिंगें
अपने आस पास
उन्हें पता है
उनके
इतने फलदार होते हुए भी
उनके प्रति
कोई नहीं
व्यक्त करेगा अपनी सहानुभूति
उनके पालनहार ही बनेंगे
उनके भक्षक
उन्हें देख निहत्था व लाचार
उनकी भावभीनी विदाई की
करेंगे तैयारी
तोड़ दिए जायेंगे
मकड़ी के जालों से दीखते
शाखाओं पर
सवार रिश्ते
हरी-हरी पत्तियों पर भी
नहीं खायेगा कोई तरस
काटते जायेंगे
पेड़ों के पेड़
व
बागों के बाग़
और हम सब
बने रहेंगे तमाशबीन
बस में
सड़क पर
अस्पताल में
घर में
कार्यालयों में
हर जगह
बैसे ही जैसे
दिल्ली की
सोलह दिसंबर दो हज़ार बारह
वाली रात
दोहराई जा रही हो
दामिनी, निर्भया
या
ज्योति के
नाम में गुमनाम।
(3 जनवरी
2014, रात्रि
12 बजे, सुभाष नगर बरेली)
हताश से दीख रहे हैं
ये हरे पेड़
बनती देख बिल्डिंगें
अपने आस पास
ये हरे पेड़
बनती देख बिल्डिंगें
अपने आस पास
उन्हें पता है
उनके
इतने फलदार होते हुए भी
उनके प्रति
कोई नहीं
व्यक्त करेगा अपनी सहानुभूति
उनके
इतने फलदार होते हुए भी
उनके प्रति
कोई नहीं
व्यक्त करेगा अपनी सहानुभूति
उनके पालनहार ही बनेंगे
उनके भक्षक
उन्हें देख निहत्था व लाचार
उनकी भावभीनी विदाई की
करेंगे तैयारी
उनके भक्षक
उन्हें देख निहत्था व लाचार
उनकी भावभीनी विदाई की
करेंगे तैयारी
तोड़ दिए जायेंगे
मकड़ी के जालों से दीखते
शाखाओं पर
सवार रिश्ते
हरी-हरी पत्तियों पर भी
नहीं खायेगा कोई तरस
मकड़ी के जालों से दीखते
शाखाओं पर
सवार रिश्ते
हरी-हरी पत्तियों पर भी
नहीं खायेगा कोई तरस
काटते जायेंगे
पेड़ों के पेड़
व
बागों के बाग़
पेड़ों के पेड़
व
बागों के बाग़
और हम सब
बने रहेंगे तमाशबीन
बस में
सड़क पर
अस्पताल में
घर में
कार्यालयों में
हर जगह
बैसे ही जैसे
बने रहेंगे तमाशबीन
बस में
सड़क पर
अस्पताल में
घर में
कार्यालयों में
हर जगह
बैसे ही जैसे
दिल्ली की
सोलह दिसंबर दो हज़ार बारह
वाली रात
दोहराई जा रही हो
दामिनी, निर्भया
या
ज्योति के
नाम में गुमनाम।
सोलह दिसंबर दो हज़ार बारह
वाली रात
दोहराई जा रही हो
दामिनी, निर्भया
या
ज्योति के
नाम में गुमनाम।
(3 जनवरी
2014, रात्रि
12 बजे, सुभाष नगर बरेली)