Wednesday, August 25, 2010

Can we resolve, Can we solve...


Running Pillar to Post,
Farm to Fork,
Shimla to Shillong,
defying definite demonstrations
and defining dualism,
reaching out for 
serendipity,
with an expression 
of a jingoist,
can we resolve
can we solve
without a thought of thee or we,
without a thought of 
my beloved university.

Having sybaritic sensibilities
in the times of austerity,
looks like condominium
in legally established frames 
and fabian,
showing 
unity in bio-diversity,
carrying the gravamen 
with an intent of hiatus,
can we resolve
can we solve
without a thought of thee or we,
without a thought of 
my beloved university.

Shuttling the shuttle 
to show power 
on a non-living entity,
poor feathered entity.
Shouting slogans of 
corruption,
unscrupulous, undisciplined,
spineless opportunists,
defining and redefining,
shifting and drifting,
loyalties,
commencing a state of Leviathan  
and behaving like a Philistine,
can we resolve
can we solve
without a thought of thee or we,
without a thought of 
my beloved university.



Ignoring trumped up platitudes, 
demonstrating bewildered behavior
with calculated loyalties and 
miscalculated outcomes.
Polarization in
my beloved association,
my beloved university
flimsy 
and at times
obdurate behavior
shall not take us anywhere. 

It is not mine,
it is ours,
a temple of learning
for me.
Let us all pray
for 
recrudescence, 
revival and restrain,
if we can,
yes we can.

(I am thankful to all those who used many of the words used in the poem in the eConversations in NEHUTA googlegroup in last few days, had it not happened, this poem would not have got its birth....thanx a lot for inspiring me)

Friday, August 20, 2010

पेड़ व समीकरण

पेड़,
जमीन पर उगता है पेड़
जमीन के अन्दर होती है उसकी जड़
और
जड़ पर निर्भर करता है
पेड़ का अस्तित्व.

पेड़,
पेड़ पर होती है शाखाएं
शाखाओं पर होती हैं पत्तियां
                होते हैं फूल, फल और कांटे.

पेड़ पर होती है शाखाएं
शाखाओं पर होते हैं सम्बन्ध
संबंधों से बनते हैं समीकरण
और समय पर, मौसम पर
                निर्भर करते हैं समीकरण.

पेड़ से आती है लकड़ी
और लकड़ी से बनती है कुर्सी
कुर्सी से बनते हैं सम्बन्ध

संबंधों से बनते हैं समीकरण
और समय पर, मौसम पर
                निर्भर करते हैं समीकरण.

पेड़ शांत रहता है
कभी बोलता है,
बडबडाता है,
दहाड़ता है.
पेड़ घूमता है,
नाचता है,
गाता है,
संगीत सजाता है.
पेड़ चलता है,
दौड़ता है,
समय के साथ -
जड़ के साथ - 
बिना किये कोई समझौता.

पेड़ पर रहते हैं,
कीडे, मकोडे व पक्षी.
पेड़ पर होते हैं,
आश्रित 
जीव - मनुष्य, जानवर, 
कीडे, मकोडे व पक्षी,
कुर्सी पर भी.

सम्बन्ध, समीकरण व संयोग,
समय, काल व परिस्थिति, 
पेड़ को जड़ से अलग करते हैं.
पेड़ शांत रहता है
सब कुछ सहता है.

समय, काल और परिस्थिति,
जड़, पेड़ और कुर्सी,
सम्बन्ध, समीकरण और संयोग,
अपना-अपना कहना कहते हैं,
सब कुछ सहते हैं,
पेड़, 
जड़ से अलग होकर भी.

(15 July, 2008, Shillong, 10:55 AM-12:20 Noon)

Saturday, August 14, 2010

विश्वास करके मैने हज़ार ठोकरें खायीं
फिर भी रेखाएं हाँथ की उल्टी पायीं

विजय कुमार श्रोत्रिय

Friday, August 6, 2010

मैंने देखा भाव सब बडने लगे हैं
क्या कहूं अब शब्द भी लड़ने लगे हैं
भूख सोई है कहीं करवट बदलकर
अन्न के दाने वहां सड़ने लगे हैं

विजय कुमार श्रोत्रिय