चश्म आँखों ने सफ़र को देखा
मेरी माँ ने हर कहर को देखा
हर फलसफे से प्यार बढकर है
उनकी आँखों ने इस ज़हर को देखा
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सड़क पर भागते शव को देखा
धुंद मे टिमटिमा पहर देखा
दौडते-भागते कटी हर शब्
रुकते-थकते ये मंज़र देखा
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भावना आँख से छलकती है
प्यास से रोशनी चमकती है
मेरी बेटी के प्रश्न जैसे हों
उनमे अच्छी सुबह सी दिखती है
(21st Jan 2011, 6:30 AM, travelling from Guwahati to Shillong in Taxi)
मेरी माँ ने हर कहर को देखा
हर फलसफे से प्यार बढकर है
उनकी आँखों ने इस ज़हर को देखा
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सड़क पर भागते शव को देखा
धुंद मे टिमटिमा पहर देखा
दौडते-भागते कटी हर शब्
रुकते-थकते ये मंज़र देखा
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भावना आँख से छलकती है
प्यास से रोशनी चमकती है
मेरी बेटी के प्रश्न जैसे हों
उनमे अच्छी सुबह सी दिखती है
(21st Jan 2011, 6:30 AM, travelling from Guwahati to Shillong in Taxi)
सुन्दर अभिव्यक्ति!
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