आखिर क्यों
बनता जा रहा हूँ मैं
पत्थर
सड़क के बीच
देखकर बहता पानी
अप्राकृतिक
वर्षा देखकर
पानी के टेंकों से
देखते
सीमा लांघते
सुनते
साक्षात झूठ
देखते
मूल्यों का होते
सौदा
मूर्त व मौन
रूप से
देखते-पड़ते
वो सब कुछ
जिसपर प्रतिक्रिया
आवश्यक है
अपेक्षित
प्रतिक्रिया
पर लगाते
हुए विराम
उपस्थिति
अनुपस्थिति
के अंतर के ज्ञान
से परे
मैं पत्थर
बनना नहीं चाहता
या फिर
सोचता हूँ
बनूँ ऐसा पत्थर
जिसके पास अपने आपको
फेंकने की हो
शक्ति
मुझे ज्ञात है
पत्थर से ही बनते हैं
भवन
पत्थर के
इधर-उधर
होने से होता है
विभाजन
पत्थर में होते हैं
प्राण
और प्रायः
लोग मानते हैं
पत्थर में होते हैं
भगवान
लेकिन फिर भी
स्वभावतः
मैं पत्थर बनना
नहीं चाहता
फिर
आखिर क्यों
बनता जा रहा हूँ मैं
पत्थर
मुझे डर है
न बन जाये
ये मेरी
आदत
निवेदन
रोको
मुझे
पत्थर बनने से.
(11:10 pm, 10 Dec 2011, Shillong)
बनता जा रहा हूँ मैं
पत्थर
सड़क के बीच
देखकर बहता पानी
अप्राकृतिक
वर्षा देखकर
पानी के टेंकों से
देखते
सीमा लांघते
सुनते
साक्षात झूठ
देखते
मूल्यों का होते
सौदा
मूर्त व मौन
रूप से
देखते-पड़ते
वो सब कुछ
जिसपर प्रतिक्रिया
आवश्यक है
अपेक्षित
प्रतिक्रिया
पर लगाते
हुए विराम
उपस्थिति
अनुपस्थिति
के अंतर के ज्ञान
से परे
मैं पत्थर
बनना नहीं चाहता
या फिर
सोचता हूँ
बनूँ ऐसा पत्थर
जिसके पास अपने आपको
फेंकने की हो
शक्ति
मुझे ज्ञात है
पत्थर से ही बनते हैं
भवन
पत्थर के
इधर-उधर
होने से होता है
विभाजन
पत्थर में होते हैं
प्राण
और प्रायः
लोग मानते हैं
पत्थर में होते हैं
भगवान
लेकिन फिर भी
स्वभावतः
मैं पत्थर बनना
नहीं चाहता
फिर
आखिर क्यों
बनता जा रहा हूँ मैं
पत्थर
मुझे डर है
न बन जाये
ये मेरी
आदत
निवेदन
रोको
मुझे
पत्थर बनने से.
(11:10 pm, 10 Dec 2011, Shillong)
man ki gahan bhaavnaon se paripoorn prastuti.bahut uttam.
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