मेरी कविताएं
Saturday, February 4, 2012
मुझे जो बोलना सिखाती थी
आज चुप बैठ मुझको सुनती है
मेरी बेटी सुना रही है अब
मेरी माँ अब भी ख्वाब बुनती है
27 Jan 2012, Port Blair
2 comments:
अरुण चन्द्र रॉय
February 5, 2012 at 12:58 AM
बहुत बढ़िया.... तीन पीढ़ियों को बुन दिया आपने
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sureshshrotri
March 22, 2012 at 10:34 PM
enjoyed several of your poems.very good.keepit on.
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बहुत बढ़िया.... तीन पीढ़ियों को बुन दिया आपने
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