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मैं कविता को बनाता हूँ, मुझे कविता बनाती है
मेरी अनुभूति को अभिव्यक्त कर, शोभा बढाती है
मेरी कविता, मेरी भाषा, मेरी दुनिया, मेरी आशा
मैं कविता को बनाता हूँ, मुझे कविता बनाती है
मेरी अनुभूति को अभिव्यक्त कर, शोभा बढाती है
मेरी कविता, मेरी भाषा, मेरी दुनिया, मेरी आशा
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे हरपल जगाती है।
26
मुझे साहित्य प्यारा है, ये जीवन का सहारा है
मगर वाणिज्य रोटी है, इसी ने घर संभाला है
मेरी क्षमता, तेरी ममता, मेरी भाषा, मेरी आशा,
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही जीवन हमारा है.
27
मैं बच्चों में जगाता हूँ, जो बूढ़़े छोड़ देते हैं,
बदलते मूल्य बच्चों को, भटकता मोड़ देते हैं
अजब दुनिया, अजब धंधे, अजब आंखें, सभी अंधे
मैं इतना सोच सकता हूँ, भटककर जोड़ लेते हैं।
(10 May 2012, 11 PM, Shillong)
गंभीर और सार्थक कविता... एक उद्देश्य है कविता में..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर उत्कृष्ट रचना हार्दिक बधाई
ReplyDeleteमेरी कविता, मेरी भाषा, मेरी दुनिया, मेरी आशा
ReplyDeleteमैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे हरपल जगाती है।
सच कहा आपने ...आत्मिक संतोष देती है कविता