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मैं जब आंखें झुकाता हूँ, उन्हें आभास होता है,
खरा खोटा सुनाते हैं, विरोधाभास होता है,
मेरी ताकत, मेरा परिचय, मेरा चेहरा, मेरा दर्पण
मैं जब आंखें झुकाता हूँ, उन्हें आभास होता है,
खरा खोटा सुनाते हैं, विरोधाभास होता है,
मेरी ताकत, मेरा परिचय, मेरा चेहरा, मेरा दर्पण
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही अभ्यास होता है।
7 May 2012, Shillong
सुन्दर मुक्तक!
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