Wednesday, October 24, 2012

चूड़ियाँ


मैंने देखी 
एक माँ
अपने
दो वर्षीय
पुत्र को
खेल-खेल में
पहनाती हुई
चूड़ियाँ

बच्चा
झटक रहा था
अपना हाथ
सिकोड़ रहा था
अपनी नाक
खींच रहा था
अपनी उँगलियाँ
तनी हुई थीं
उसकी भौंए
चेहरे में
दिख रही थी
अकड़
इस दो वर्षीय
लड़के के
आँखों में भरी थी
एक रुआंस
लेकिन एक बूँद न थी
आंसू की

मैंने द्रष्टि हटाई
उसकी माँ
की ओर देखा
मैं
प्रयास कर रहा था
पड़ने का
उस माँ की आँखों को
आंकने का
उन आँखों के
आधार को
समझने का
उस भीनी मुस्कान को

आभा
देखते बनती थी
माँ के चेहरे की
दबी सी दीप्ति

मानो
बच्चा
कहना चाहता था
कुछ भी हो
नहीं पहनूंगा
चूड़ियाँ

मानो
माँ
कहना चाहती थी
कभी नहीं
कभी नहीं
चाहूंगी मैं
की मेरे बेटे को
पहननी पडें
चूड़ियाँ

मैं
मात्र इतना
सोच रहा था
आखिर
कब तक
कब तक
यह दो वर्षीय बच्चा
अपने को
बचा पायेगा
चूड़ियों से

अपनी इच्छा से
या
किसी प्रभाव में

मुझे केवल
एक ही है
डर
कहीं
यह स्वीकार
न कर ले
स्वेच्छा से
पहनना
चूड़ियाँ
कभी इसको
अच्छा  लगने लगे
पहनना चूड़ियाँ

कम से कम
ऐसा नहीं लगता
देख कर
इसके
आज के तेवर

खेल-खेल में भी
चूड़ियाँ पहनना
उसे स्वीकार नहीं है
आखिर
स्वीकार
हो भी क्यों।

Thursday, October 18, 2012

राजनीति

47

मैं कुर्ता पहनता हूँ पर सियासत भर नहीं होती
कदम सीधे जुबां सीधी शराफ़त कम नहीं होती
ये कैसी राजनीति है जो बस कुर्सी बचाती है
मैं इतना सोच सकता हूँ खिलाफ़त कम नहीं होती
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Friday, October 12, 2012

धूप

अच्छी लगती है धूप
बरसात के बाद
रात के बाद
गर्मी के लिए
रौशनी के लिए
अच्छी लगती है धूप

धूप  का महत्व
बरसात जताती है
रौशनी का महत्व
रात जताती है
ठीक उसी तरह
जैसे
सत्य का महत्व
असत्य
अच्छाई का
बुराई
रात का
दिन
आदि-इत्यादि

सब महत्वपूर्ण है
अच्छाई-बुराई
सत्य-असत्य
रात-दिन
जाड़ा-गर्मी-बरसात

इसीलिए
अच्छी लगती है धूप
गर्मी व पसीने से परे
बरसात के बाद
रात के बाद

धूप, छाया  व रोशनी
बरसात व अँधेरा
रात और दिन।

10.10.10 - Shillong

Thursday, October 4, 2012

मूंछें

छोटे-छोटे
बालकों को
अच्छी लगती हैं
मूंछें
अच्छा  लगता है
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से

जैसे-जैसे
बड़ते हैं वे
उनकी अपनी
आती हैं
मूंछे

और फिर
धीरे-धीरे
उनकी मूंछें
होती जाती हैं
छोटी
और छोटी

और नौकरी
मे आने के बाद
प्रोन्नत
हो जाने के बाद
धीरे-धीरे
गुम  होती जाती हैं
मूंछें

समय के साथ
परिस्थितियों के साथ
कैसे समायोजित
हो जाती हैं
मूंछें

मूक
विचारता हूँ मैं
प्रयास करता हूँ
समझने का
कारण
इस समायोजन का

विवशता
अभिलाषाएं

आकांक्षाएं

काश
ऐसा न होता

बालकों की तरह
अच्छी लगती रहतीं
मूंछें
अच्छा  लगता रहता
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से

बालकों को
अच्छी
लगती रहती हैं
मूंछें।

(20 जुलाई 2012, 7 PM, in train at Samastipur)