छोटे-छोटे
बालकों को
अच्छी लगती हैं
मूंछें
अच्छा लगता है
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से
जैसे-जैसे
बड़ते हैं वे
उनकी अपनी
आती हैं
मूंछे
और फिर
धीरे-धीरे
उनकी मूंछें
होती जाती हैं
छोटी
और छोटी
और नौकरी
मे आने के बाद
प्रोन्नत
हो जाने के बाद
धीरे-धीरे
गुम होती जाती हैं
मूंछें
समय के साथ
परिस्थितियों के साथ
कैसे समायोजित
हो जाती हैं
मूंछें
मूक
विचारता हूँ मैं
प्रयास करता हूँ
समझने का
कारण
इस समायोजन का
विवशता
अभिलाषाएं
व
आकांक्षाएं
काश
ऐसा न होता
बालकों की तरह
अच्छी लगती रहतीं
मूंछें
अच्छा लगता रहता
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से
बालकों को
अच्छी
लगती रहती हैं
मूंछें।
(20 जुलाई 2012, 7 PM, in train at Samastipur)
बालकों को
अच्छी लगती हैं
मूंछें
अच्छा लगता है
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से
जैसे-जैसे
बड़ते हैं वे
उनकी अपनी
आती हैं
मूंछे
और फिर
धीरे-धीरे
उनकी मूंछें
होती जाती हैं
छोटी
और छोटी
और नौकरी
मे आने के बाद
प्रोन्नत
हो जाने के बाद
धीरे-धीरे
गुम होती जाती हैं
मूंछें
समय के साथ
परिस्थितियों के साथ
कैसे समायोजित
हो जाती हैं
मूंछें
मूक
विचारता हूँ मैं
प्रयास करता हूँ
समझने का
कारण
इस समायोजन का
विवशता
अभिलाषाएं
व
आकांक्षाएं
काश
ऐसा न होता
बालकों की तरह
अच्छी लगती रहतीं
मूंछें
अच्छा लगता रहता
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से
बालकों को
अच्छी
लगती रहती हैं
मूंछें।
(20 जुलाई 2012, 7 PM, in train at Samastipur)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete"moochhen" saral bhasha me likhi ek behad khoosurat rachna.
ReplyDeleteविजय जी ...इन मूँछो के गायब होने का सबसे बड़ा कारण हैं ...उनकी सफेदी ...जो हर कोई पसंद नहीं करता :))))
ReplyDeleteएक अलग सोच से लिखी गई कविता
MOOCCHON KA SHIKAYAT
ReplyDeleteAap ne suna nahi..aap ke moochene app se kya kahaah??
Hum Moochon se seekha ..aage bhad ne ki daur..
kaat ne ke baad bhi ugneki prayyas me..
ek nirantar kooshish me..
baar baar hamere upar hamala bolte ho..
tumhari saaman purane ho chuke..hum phirbhi naye taaje
tumhari mardangi ka vasta dete hai
kyo aapne ko aage aur ham ko peeche chod na chah te ho
YS