मैंने देखी
एक माँ
अपने
दो वर्षीय
पुत्र को
खेल-खेल में
पहनाती हुई
चूड़ियाँ
बच्चा
झटक रहा था
अपना हाथ
सिकोड़ रहा था
अपनी नाक
खींच रहा था
अपनी उँगलियाँ
तनी हुई थीं
उसकी भौंए
चेहरे में
दिख रही थी
अकड़
इस दो वर्षीय
लड़के के
आँखों में भरी थी
एक रुआंस
लेकिन एक बूँद न थी
आंसू की
मैंने द्रष्टि हटाई
उसकी माँ
की ओर देखा
मैं
प्रयास कर रहा था
पड़ने का
उस माँ की आँखों को
आंकने का
उन आँखों के
आधार को
समझने का
उस भीनी मुस्कान को
आभा
देखते बनती थी
माँ के चेहरे की
दबी सी दीप्ति
मानो
बच्चा
कहना चाहता था
कुछ भी हो
नहीं पहनूंगा
चूड़ियाँ
मानो
माँ
कहना चाहती थी
कभी नहीं
कभी नहीं
चाहूंगी मैं
की मेरे बेटे को
पहननी पडें
चूड़ियाँ
मैं
मात्र इतना
सोच रहा था
आखिर
कब तक
कब तक
यह दो वर्षीय बच्चा
अपने को
बचा पायेगा
चूड़ियों से
अपनी इच्छा से
या
किसी प्रभाव में
मुझे केवल
एक ही है
डर
कहीं
यह स्वीकार
न कर ले
स्वेच्छा से
पहनना
चूड़ियाँ
कभी इसको
अच्छा न लगने लगे
पहनना चूड़ियाँ
कम से कम
ऐसा नहीं लगता
देख कर
इसके
आज के तेवर
खेल-खेल में भी
चूड़ियाँ पहनना
उसे स्वीकार नहीं है
आखिर
स्वीकार
हो भी क्यों।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
♥(¯*•๑۩۞۩~*~विजयदशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!~*~۩۞۩๑•*¯)♥
ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
बहुत अच्छा विषय
ReplyDeletebahut behtareen... ek dum alag sa vishay... pahle to maine socha ek baal sulabh gun ko aap kavita me jata rahe ho... fir iski gahrayee ko samajh paaya, jab aage padha... !! sach me dil se pasand aayeee:)
ReplyDeleteमज़बूरी इंसान से क्या करवा सकती है ...ये आपकी कविता को पढ़ने के बाद अच्छे से समझ आता है .....सादर
ReplyDeleteBaccha maa ka haqh hai jaisa maa ke upar jatata hai baccha (do saal)ka..oh ek unmol rista jo maa apne aap ko sajaati hai...choodi to ek bahana hai..oh sajaati ji hai..apni ek naya jeevan ko..oh ek vajjod bhari anubhuti hai..jo pyar ka lehar hai ..chandini ke kiran hai..oh ek moti ke chamak hai..oh sajaati hai tanmai bandhan ko..ek sanskar ko ek befikar hoke godi me khelne ki ek ijajat ko..ek..suraksha kawach ko..ek pyaar bhari ashirwad ko..oh choodi ek kehl hai un tamannaon ke jilmil riste ko sajaani ko...papa kya jane.
ReplyDeleteY Satya