Sunday, March 24, 2019

मंज़िलें उनको मिलीं जो दौड़ में शामिल न थे

लक्ष्य कोई भी नहीं था,
पर दिशा थी, दृष्टि थी;
कर्म था, आनंद था,
प्रण था, संतुष्टि थी;
प्रार्थना के स्वर सरल थे,
भाव कटु,
दाखिल न थे;
मंज़िलें उनको मिलीं
जो दौड़ में शामिल न थे।

बोझ कोई भी नहीं,
बस रास्ता था,
साथ था, संकल्प था;
फूल की खुशबू थी,
स्नेह था, रिश्ते थे,
नहीं विकल्प था;
साथ उनका भी मिला,
जो दृष्टि के काबिल न थे;
मंज़िलें उनको मिलीं,
जो दौड़ में शामिल न थे।

जड़ थी, पेड़ था,
शाखाओं से पत्ते,
झड़ रहे थे;
वृक्ष छाया दे रहे थे,
पक्षियों के स्वर,
कहानी गढ़ रहे थे;
बौर था, आंधी थी, बल था,
पर कभी गा़फ़िल न थे;
मंज़िलें उनको मिलीं,
जो दौड़ में शामिल न थे।

जोर भी पुरजोर था, योद्धा थे,
गुणा पर अढ़ रहे थे;
भूल कर प्रारब्ध को,
छल भाव से,
कहानी गढ़ रहे थे;
तीब्र लहरों के थपेड़े थे,
मगर साहिल न थे;
मंज़िलें उनको मिलीं,
जो दौड़ में शामिल न थे।

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