मेरी कविताएं
Sunday, March 24, 2019
जल गई रस्सी
जल गई रस्सी नहीं उस गांठ का कुछ रूप बदला
बह गई मिट्टी समंदर का नहीं स्वरूप बदला
आपसी मतभेद में रिश्ते सभी जल राख सूखे
गल गया पत्थर शिखर ने झुक स्वयं जब रुख बदला
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