कान,
क्यों वो सुनते हैं
जो सुनना नहीं चाहता हूँ मैं
या,
दिखाना नहीं चाहता हूँ मैं
कि मैने कुछ सुना.
मैं
सुनना चाहता हूँ
वह सब
जो लोग सुनाना चाहते हैं
फिर क्यों
मेरा चुनाव
व्यक्तियों का है
न कि
वे "क्या" सुनाना चाहते हैं
उसका...
(17th Sept 2010, Shillong)
क्यों वो सुनते हैं
जो सुनना नहीं चाहता हूँ मैं
या,
दिखाना नहीं चाहता हूँ मैं
कि मैने कुछ सुना.
मैं
सुनना चाहता हूँ
वह सब
जो लोग सुनाना चाहते हैं
फिर क्यों
मेरा चुनाव
व्यक्तियों का है
न कि
वे "क्या" सुनाना चाहते हैं
उसका...
(17th Sept 2010, Shillong)
बहुत सही कहा कि यह "मेरा चुनाव" है कि मैं क्या सुनूं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बहुत सही कहा है...अच्छी रचना...
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
bahut sahi kahaa aapne ...........badhiya
ReplyDeleteयथार्थ से जुडी हुई सुन्दर रचना!
ReplyDeleteumda soch ka nazara dikha kavita me sir.. Hindi paste nhin ho rahi is box me.. :(
ReplyDeletelog toh sunana
ReplyDeleteChahtey hain anek prakar ke baatey
kabhi khatta toh
kabhi meetha
aur phir kabhi kissi ke
burai
Par bahut kam log sunatey hain Veeron ki
Veer gatha
Joh aaneywala dinon mein
naya samaj ka neemb dalega
aur
samaj mein
bhabya parivartan aur sadhuta layega
यथार्थ से जुडी हुई सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसबकुछ सुनना चाहते हैं परन्तु....पृदशित नहीं करना चाहते
ReplyDeleteवास्तविकता हैं ......... सभी की....