उनकी आँखों ने कहा
मेरी आँखों ने सुना
मेरे होठों ने पिया
उनके होठों से गिरा
मेरे हांथों ने सुना
उनके क़दमों ने कहा
उनके गालों पे सजा
मेरे होठों का कहा
एक सन्नाटा सा था
सुबह चिड़िया ने कहा
आँख क्यों दर्द सहे
स्वप्न क्यों दर्द बना.
शिलांग ... १ अप्रैल २०११ ...
सहज शब्दों में गहन प्रेम को अभिव्यक्त करती सुन्दर कविता...
ReplyDeleteएक सन्नाटा सा था
ReplyDeleteसुबह चिड़िया ने कहा
आँख क्यों दर्द सहे
स्वप्न क्यों दर्द बना.
...
dard aur prem shayad sikke ke do pahloo hain.
अव्यक्त को व्यक्त करने की आकांक्षा।
ReplyDeleteभाई विजय कुमार जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteदर्द को दिल में ही पलने दो, पलने दो,
ReplyDeleteदिल के जज्वातों को दिल में ही जलने दो
दर्द जब पलता है घाव उभर आते हैं
दिल के हर कोने से भाव निखर आते हैं
दर्द के राहों में आहों को बहने दो
दर्द को दिल में ही पलने दो
जिंदगी जल जल के रंग नया लाती है
हर नयी पौध मुहब्बत की हवा पाती है
इसलिए चाहों को तिल तिल कर गलने दो
दर्द को दिल में ही पलने दो, पलने दो,
इश्क का अश्क से मोल चुकाना होगा
अपने अश्कों से जमाने को सजाना होगा
इसलिए अश्कों को खुल कर मत बहने दो
दर्द को दिल में ही पलने दो, पलने दो