आदमी से आदमी, क्यों भागता है दूर,
जानता है भांजता है, फिर वही भरपूर,
सोंचता हूँ खोल दूं, मैं चक्षु चलकर स्वयं
जानकर होता नहीं संतोष पथ पर चूर।
10 May 2012, Shillong
जानता है भांजता है, फिर वही भरपूर,
सोंचता हूँ खोल दूं, मैं चक्षु चलकर स्वयं
जानकर होता नहीं संतोष पथ पर चूर।
10 May 2012, Shillong
sundar...
ReplyDeleteविडंबना है जीवन की यह...
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