48
वो
मस्जिद तोड़ देते हैं ये मंदिर तोड़ देते हैं
ये
नेता वोट की खातिर गणित सब जोड़ लेते हैं
वही सब सुर वही सरगम वही है गीत वही संगीत
मैं
इतना सोच सकता हूँ नया सब कोढ देते हैं
49
वो
कुप्पी को जलाता था जब भी रात होती थी
सुना
है लालटेनों की भी अक्सर बात होती थी
वो
अब रोशन करे है जिंदगी सबकी उजाले से
मैं
इतना सोच सकता हूँ बस कलम दावात होती थी
50
मैं
जब बीमार पड़ता हूँ मुझे कुछ क्रोध लगता है
नहीं
लाये नहीं जाये इसी का शोध लगता है
जतन
अच्छे करम अच्छे अरे समझो मेरे बच्चे
मैं
इतना सोच सकता हूँ यही सब बोध लगता है
==============================
- मैं इतना सोच सकता हूँ (राजनीति ) (47 - CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 8 (44-46 - CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 7 (38-43 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 6 (28-37 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - (24 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - (23 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 4 (20-22 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - (19 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - (18 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - (17 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)
- मैं इतना सोच सकता हूँ - 1 (1-6 CLICK HERE)
जीवन के अनुभवों को कहते सुंदर मुक्तक
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteअनुभव के मोती पिरोये हैं आपने...
बेहतरीन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDelete~सादर !
वाह बहुत खूब ....सादर
ReplyDeleteउम्दा कथन,सुंदर रचना
ReplyDeleteथोड़े मैं बहुत कुछ कहते मुक्तक |
ReplyDeleteआशा
बहुत बढ़िया मुक्तक....
ReplyDeleteगहन भाव लिए हुए...
सादर
अनु
जतन अच्छे करम अच्छे अरे समझो मेरे बच्चे
ReplyDeleteमैं इतना सोच सकता हूँ यही सब बोध लगता है
सुंदर बात ...शुभकामनायें ॥
धन्यवाद यशवंत जी...
ReplyDelete