Tuesday, August 28, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 7

38

मुझे हर हार में अपनी, सुहानी आस दिखती है
मगर जब जीत होती है, पुरानी प्यास बुझती है
मेरा गिरना, तेरा उठना, तेरा गिरना, मेरा उठना
मैं इतना सोच सकता हूँ, हार से जीत झुकती है।

10.7.12 - Shillong 9 pm

39

मुझे सब कष्ट प्यारे हैं, वो जीने के सहारे हैं, 
मगर फिर भी ख़ुशी के पल, ठहाकों में गुजारे हैं,
मेरा हँसना, मेरा रोना, मेरे आंसूं, मेरा हँसना,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सभी आंसूं हमारे हैं।

11.7.12 - Shillong 11 pm

40
मेरा प्रकाश से लड़ना, अँधेरे जान लेते हैं
मगर क्यों पूर्णिमा को पूज, अमावस मान लेते हैं,
कभी तो जल दिए सा रौशनी कर सोच उनकी भी,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सुमन खिल प्राण देते हैं।

12.7.12 - 8:30 AM , Shillong

41

मेरे अपने मुझे मेरी छिपी क्षमता दिखाते हैं,
कपिल सन्दर्भ देकर कोष का दर्शन बताते हैं,
मेरी क्षमता, मेरी सीमा, मेरी नीति, मेरी नियति,
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो फिर भी तिलमिलाते हैं।

12.7.12 - 9 AM , Shillong

42

मुझे प्रकृति बुलाती है, हरी दुनिया दिखाती है,
मगर हर दाल पेड़ों की व्यथा पर मुस्कराती है
हरी डालें भरी डालें कटी डालें फटी आंखें
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे जड़ से हिलाती हैं

12.7.12 - 9:30 AM , Shillong

43

मुझे बकवास का दर्शन बड़ा संजीव दिखता है
मगर हर शब्द अपने में मुझे गांडीव दिखता  है
जहाँ तक कल्पना पहुंचे मेरा एहसास पहुंचेगा
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं निर्जीव दिखता  है

12.7.12 - 9:40 AM , Shillong

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i.     मैं इतना सोच सकता हूँ -  (1-6 CLICK HERE)

ii.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)

iii.   मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)

iv.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (17 CLICK HERE)

v.    मैं इतना सोच सकता हूँ -   (18 CLICK HERE)

vi.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (19 CLICK HERE)

vii.  मैं इतना सोच सकता हूँ -  4 (20-22 CLICK HERE)

viii. मैं इतना सोच सकता हूँ -   (23 CLICK HERE)

ix.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (24 CLICK HERE)

x.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)

xi.   मैं इतना सोच सकता हूँ - 6 (28-37 CLICK HERE)

Wednesday, August 22, 2012

कुत्ते और आदमी

मैंने कुत्ते भी खूब देखे हैं
दुम हिलाकर सलाम करते हैं

आहटों की समझ चुनिंदा है
दुश्मनों पे सवार रहते हैं

पैर उठता है नाक घुसती है
वो भी इतना ख्याल रखते हैं

शांत रहकर भी दुम हिलाते हैं
अपने मालिक की धार करते हैं

उसकी  तहजीब आदमी सी है
भौंककर बेजुबान रहते हैं

उसकी निष्ठा विशिष्ट होती है
आदमी सब तमाम करते हैं

आदमी कुछ तो अलग हो उनसे
जिनको कुत्ते सलाम करते हैं

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25.7.12 - बरेली - 11 AM 

Monday, August 13, 2012

कब होगा सांप्रदायिक तनाव

देखकर
अपनी
सिलने दी ब्लाउज
पहने
पड़ोसन को
महिला खीज रही है

प्रतीक्षा कर रही है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव

इस बार
तैयार रहूंगी मैं
अपने पति-परिवार के साथ
लूटने को
दर्जी  की दुकान

उधर
दर्जी
देखकर महंगाई
बाजार-भाव
देखकर
रेडीमेड कपड़ों के
बाज़ार का प्रभाव 
खीज रहा है

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव

योजना बना रहा है
स्वयं रखने की
दुकान मे पेट्रोल
मानो
कह रहा हो
जला दो इसे
राख कर दो
सुना है
इस बार
सरकार देगी
अच्छा मुआवज़ा


मोहल्ले भर की
शादियों मे बजाने वाले
ब्रास-बैंड का मालिक
जिसने मोहल्ले भर की
खुशियों में
देखीं अपनी खुशियाँ
जिसने सभी की
खुशियों में
लगाये हों चार चाँद
जिसकी
गाड़ी व घर में
लगा दी गई थी आग
पिछली बार

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
तैयार है
इस बार
लगवाने को आग
अपने घर व गाड़ी में
उसे भी भनक है
दर्जी की तरह
इस बार
अच्छी होगी
मुआवज़े की रकम
अभी निबटा है
निकाय चुनाव
और तैयारी है
लोकसभा चुनाव की

बीमा  कंपनी का एजेंट
जो प्रायः
समझाता था
बीमा के
फ़ायदे

क़ायदे
कौन पूछता है उसे
सब-कुछ
शांतिपूर्ण होने से
आखिर उसको भी
करना है पूरा
अपना लक्ष्य (टार्गेट)
बचाने को अपनी
बाजारू साख
खीज रहा है वह

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

उधर
सोई हुई लाठियां
आपस मे
बतिया रही हैं
बाँट रहीं हैं
अपने-अपने
पुराने अनुभव
पिछली बार के
इतरा  रहीं हैं
अपने-अपने
निशानों पर
धर्मभेद से परे
रक्तभेद से परे
सोई हुई लाठियां

प्रतीक्षा कर रहीं हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

रोज़ कमाई  करने वाला
मजदूर
होता है त्रस्त
सांप्रदायिक तनाव के दौरान

उसके घर का चूल्हा
जलता है
कितनो के घर बनाने से
वो
मस्जिद मे
ईंट रखता है
मंदिर में
पत्थर लगाता  है
वो
बनाता है रास्ता
सभी के चलने के लिए
धर्म जाति व पंथ से परे
उसे मालूम ही नहीं होता
कौन चलेगा इस सड़क पर
कौन भागेगा
लेकर
लाठियां तलवार व  बन्दूक
इस सड़क पर

रोज कमाई  करने वाला
मजदूर
हमेशा
कामना करता है
शांति की
सांप्रदायिक  सदभाव की

बाकी शेष सब
किसी ना  किसी रूप में
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

पिछले दंगों के दौरान
घर मे आनंदित
सरकारी अधिकारी व कर्मचारी
अपने परिवार के साथ
समय बिताते व्यवसायी

पिछले दंगों के उपरान्त
प्रोन्नत हुआ
पत्रकार
प्रोन्नत हुए
पुलिस अधिकारी व कर्मचारी
जीते हुए नेता
सभी
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर
कब होगा सांप्रदायिक तनाव

छोड़कर
केवल उस रोज कमाई करने वाले
मजदूर के
जो सोचता है
(दंगों के दौरान)
आखिर
कब बंद होगा दंगा
और
कब जलेगा
उसके घर का चूल्हा।

(25 जुलाई 2012, 3:15 PM  - बरेली - during curfew)

Monday, August 6, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 6

28

मैं दिन भर गीत गाता हूँ, सरल हो गुनगुनाता हूँ
मगर भीतर रही पीड़ा को, मैं सबसे छिपाता हूँ
तेरी आंखें, तेरा पड़ना, तेरा सुनना, तेरा लड़ना
मैं इतना सोच सकता हूँ, मैं गीतों में सुनाता हूँ

29

मैं जब दाड़ी बढाता हूँ, उमर आगे सरकती है
मगर दृढ़ शक्ति मंजिल की, कई ढंग से परखती है
मेरा संकल्प सच्चा है, मेरा सन्दर्भ अच्छा है
मैं इतना सोच सकता हूँ, समय के साथ चलती है.

30

मैं जब भी पत्र लिखता हूँ, समय माध्यम बताता है
मगर स्याही, कलम, कागज, सभी अपवाद पाता है
नहीं दूरी, नहीं धेला, नहीं टिकटें, नहीं थैला
मैं इतना सोच सकता हूँ, समय उंगली चलाता है

31

मेरा दर्शन निराला है, इसी ने तो संभाला है
नहीं तो हम सभी बन्दर, सभी का अपना पाला है
सकल उत्पाद का दर्शन, अजब उत्पात करता है
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं वह चलने वाला है॰

32

सभी उत्पात का कारण, मुझे बाज़ार दिखता है
जहाँ सम्बन्ध बिकते हैं, जहाँ व्यवहार बिकता है
अजब पैसा, गजब मंदी, अजब मंडी, बहुत गंदी
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं संस्कार बिकता है.

33

मुझे क्यों शर्म आती है, वो अर्थों को छिपाती है
यहाँ हर द्रष्टि केवल अर्थ में, आधार पाती है
विविध राही, विविध रास्ता, विविध पुस्तक, विविध चर्चा
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे क्यों शर्म आती है

34

मुझे गाँधी सिखाते हैं, अहिंसा वार करती है
सभी मतभेद, संघर्षों से नैया पार करती है
सरल चिंतन, सजग चिंतन, सरल जीवन, सफल जीवन
मैं इतना सोच सकता हूँ, कि हिंसा आँख भरती है

35

मेरे कानों में फोड़ा है, मैं कुछ भी सुन नहीं सकता
मैं, 'मैं', मे डूब कर, लेकिन किसी का हो नहीं सकता
अजब यह प्रेम 'मैं' से, मैं सभी कुछ जानता हूँ सुन
मैं इतना सोच सकता हूँ, मैं 'मैं' से रह नहीं सकता

36

मुझे क्यों ज्ञान भाता है, उन्हे लक्ष्मी सुहाती है
मेरी माँ शारदा, मुझको बहुलता से बचाती है
मेरी लक्ष्मी, मेरी माता, तेरे अनुबंध, मेरे सम्बन्ध
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही विद्या जताती है

37

मुझे छाया सताती है, वो कछुए से मिलाती है
अगर विश्राम हो थककर, नई ऊर्जा सजाती है
कभी चलना, कभी थकना, कभी रुकना, नहीं थमना
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही जीवन बताती है


4.7.12 - Shillong


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v.    मैं इतना सोच सकता हूँ -   (18 CLICK HERE)

vi.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (19 CLICK HERE)

vii.  मैं इतना सोच सकता हूँ -  4 (20-22 CLICK HERE)

viii. मैं इतना सोच सकता हूँ -   (23 CLICK HERE)

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Thursday, August 2, 2012

कोकराझार से

कोकराझार से गाड़ी निकलकर आगे बढती है
मैं अपनी सांस को इक पल रुका महसूस करता हूँ

भरे तालाब आंसूं के भरा सब कुछ हरा अब भी
किसी के घर उजड़ते घाव सब  महसूस करता हूँ

ये बोडो भाई मुस्लिम दोस्त सब हैं तो यहीं के ही
सिआसत के लिए गोली चली महसूस करता हूँ

ये बालक जिनके सर से बाप का हो उठ गया साया
किसी तारीख उनके आँख में खूने'लहू महसूस करता हूँ

मुझे उनकी किताबों में अजब से शब्द दिखते हैं
उजाला हो ये कैसी कल्पना मनहूस करता हूँ

कभी बन्दूक से कोई समस्या हल नहीं होती
मैं अपनी आत्मा में बस यही महसूस करता हूँ

तुम सोचो खुद विचारो बैठ कर ढूँढो निदानों को
यह दिल्ली बेरहम है दोस्त यह महसूस करता हूँ

यहाँ जीवों के मूल्यों का महज सौदा ही होता है
ये पैसे बांटकर देखे मजा महसूस करता हूँ

(I am travelling between Lucknow and Guwahati in 12436 - Rajdhani Express... it is 4:30 PM on 30th July 2012....just crossed Kokrajhar railway station and reached New Bongaigaon..This area was in the limelight in the last few days for ethnic violence and displacement of more than 2.5 lac villagers belonging to bodo tribe and muslims (allegedly from Bangladesh).  The prime minister of India, Dr Man Mohan singh visited the camps two days back and announced Rs 300 crore relief... today P Chidambaram (the home minister of India) and LK Advani are visiting)