38
मुझे हर हार में अपनी, सुहानी आस दिखती है
मगर जब जीत होती है, पुरानी प्यास बुझती है
मेरा गिरना, तेरा उठना, तेरा गिरना, मेरा उठना
मैं इतना सोच सकता हूँ, हार से जीत झुकती है।
10.7.12 - Shillong 9 pm
39
11.7.12 - Shillong 11 pm
40
मेरा प्रकाश से लड़ना, अँधेरे जान लेते हैं
मगर क्यों पूर्णिमा को पूज, अमावस मान लेते हैं,
कभी तो जल दिए सा रौशनी कर सोच उनकी भी,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सुमन खिल प्राण देते हैं।
12.7.12 - 8:30 AM , Shillong
41
मेरे अपने मुझे मेरी छिपी क्षमता दिखाते हैं,
कपिल सन्दर्भ देकर कोष का दर्शन बताते हैं,
मेरी क्षमता, मेरी सीमा, मेरी नीति, मेरी नियति,
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो फिर भी तिलमिलाते हैं।
12.7.12 - 9 AM , Shillong
42
मुझे प्रकृति बुलाती है, हरी दुनिया दिखाती है,
मगर हर दाल पेड़ों की व्यथा पर मुस्कराती है
हरी डालें भरी डालें कटी डालें फटी आंखें
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे जड़ से हिलाती हैं
12.7.12 - 9:30 AM , Shillong
43
मुझे बकवास का दर्शन बड़ा संजीव दिखता है
मगर हर शब्द अपने में मुझे गांडीव दिखता है
जहाँ तक कल्पना पहुंचे मेरा एहसास पहुंचेगा
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं निर्जीव दिखता है
12.7.12 - 9:40 AM , Shillong
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i. मैं इतना सोच सकता हूँ - (1-6 CLICK HERE)
ii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)
iii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)
iv. मैं इतना सोच सकता हूँ - (17 CLICK HERE)
v. मैं इतना सोच सकता हूँ - (18 CLICK HERE)
vi. मैं इतना सोच सकता हूँ - (19 CLICK HERE)
vii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 4 (20-22 CLICK HERE)
viii. मैं इतना सोच सकता हूँ - (23 CLICK HERE)
ix. मैं इतना सोच सकता हूँ - (24 CLICK HERE)
x. मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)
xi. मैं इतना सोच सकता हूँ - 6 (28-37 CLICK HERE)
मुझे हर हार में अपनी, सुहानी आस दिखती है
मगर जब जीत होती है, पुरानी प्यास बुझती है
मेरा गिरना, तेरा उठना, तेरा गिरना, मेरा उठना
मैं इतना सोच सकता हूँ, हार से जीत झुकती है।
10.7.12 - Shillong 9 pm
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मुझे सब कष्ट प्यारे हैं, वो जीने के सहारे हैं,
मगर फिर भी ख़ुशी के पल, ठहाकों में गुजारे हैं,
मेरा हँसना, मेरा रोना, मेरे आंसूं, मेरा हँसना,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सभी आंसूं हमारे हैं।
11.7.12 - Shillong 11 pm
40
मेरा प्रकाश से लड़ना, अँधेरे जान लेते हैं
मगर क्यों पूर्णिमा को पूज, अमावस मान लेते हैं,
कभी तो जल दिए सा रौशनी कर सोच उनकी भी,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सुमन खिल प्राण देते हैं।
12.7.12 - 8:30 AM , Shillong
41
मेरे अपने मुझे मेरी छिपी क्षमता दिखाते हैं,
कपिल सन्दर्भ देकर कोष का दर्शन बताते हैं,
मेरी क्षमता, मेरी सीमा, मेरी नीति, मेरी नियति,
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो फिर भी तिलमिलाते हैं।
12.7.12 - 9 AM , Shillong
42
मुझे प्रकृति बुलाती है, हरी दुनिया दिखाती है,
मगर हर दाल पेड़ों की व्यथा पर मुस्कराती है
हरी डालें भरी डालें कटी डालें फटी आंखें
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे जड़ से हिलाती हैं
12.7.12 - 9:30 AM , Shillong
43
मुझे बकवास का दर्शन बड़ा संजीव दिखता है
मगर हर शब्द अपने में मुझे गांडीव दिखता है
जहाँ तक कल्पना पहुंचे मेरा एहसास पहुंचेगा
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं निर्जीव दिखता है
12.7.12 - 9:40 AM , Shillong
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i. मैं इतना सोच सकता हूँ - (1-6 CLICK HERE)
ii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)
iii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)
iv. मैं इतना सोच सकता हूँ - (17 CLICK HERE)
v. मैं इतना सोच सकता हूँ - (18 CLICK HERE)
vi. मैं इतना सोच सकता हूँ - (19 CLICK HERE)
vii. मैं इतना सोच सकता हूँ - 4 (20-22 CLICK HERE)
viii. मैं इतना सोच सकता हूँ - (23 CLICK HERE)
ix. मैं इतना सोच सकता हूँ - (24 CLICK HERE)
x. मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)
xi. मैं इतना सोच सकता हूँ - 6 (28-37 CLICK HERE)
नए तरह की श्रृंखलाबद्ध कविता... सामाजिक सरोकार से भरी कवितायेँ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.....बेहतरीन....
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ReplyDeleteमेरे अपने मुझे मेरी छिपी क्षमता दिखाते हैं,
कपिल सन्दर्भ देकर कोष का दर्शन बताते हैं,
मेरी क्षमता, मेरी सीमा, मेरी नीति, मेरी नियति,
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो फिर भी तिलमिलाते हैं।
बेहतरीन श्रृंखला