Monday, August 6, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 6

28

मैं दिन भर गीत गाता हूँ, सरल हो गुनगुनाता हूँ
मगर भीतर रही पीड़ा को, मैं सबसे छिपाता हूँ
तेरी आंखें, तेरा पड़ना, तेरा सुनना, तेरा लड़ना
मैं इतना सोच सकता हूँ, मैं गीतों में सुनाता हूँ

29

मैं जब दाड़ी बढाता हूँ, उमर आगे सरकती है
मगर दृढ़ शक्ति मंजिल की, कई ढंग से परखती है
मेरा संकल्प सच्चा है, मेरा सन्दर्भ अच्छा है
मैं इतना सोच सकता हूँ, समय के साथ चलती है.

30

मैं जब भी पत्र लिखता हूँ, समय माध्यम बताता है
मगर स्याही, कलम, कागज, सभी अपवाद पाता है
नहीं दूरी, नहीं धेला, नहीं टिकटें, नहीं थैला
मैं इतना सोच सकता हूँ, समय उंगली चलाता है

31

मेरा दर्शन निराला है, इसी ने तो संभाला है
नहीं तो हम सभी बन्दर, सभी का अपना पाला है
सकल उत्पाद का दर्शन, अजब उत्पात करता है
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं वह चलने वाला है॰

32

सभी उत्पात का कारण, मुझे बाज़ार दिखता है
जहाँ सम्बन्ध बिकते हैं, जहाँ व्यवहार बिकता है
अजब पैसा, गजब मंदी, अजब मंडी, बहुत गंदी
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं संस्कार बिकता है.

33

मुझे क्यों शर्म आती है, वो अर्थों को छिपाती है
यहाँ हर द्रष्टि केवल अर्थ में, आधार पाती है
विविध राही, विविध रास्ता, विविध पुस्तक, विविध चर्चा
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे क्यों शर्म आती है

34

मुझे गाँधी सिखाते हैं, अहिंसा वार करती है
सभी मतभेद, संघर्षों से नैया पार करती है
सरल चिंतन, सजग चिंतन, सरल जीवन, सफल जीवन
मैं इतना सोच सकता हूँ, कि हिंसा आँख भरती है

35

मेरे कानों में फोड़ा है, मैं कुछ भी सुन नहीं सकता
मैं, 'मैं', मे डूब कर, लेकिन किसी का हो नहीं सकता
अजब यह प्रेम 'मैं' से, मैं सभी कुछ जानता हूँ सुन
मैं इतना सोच सकता हूँ, मैं 'मैं' से रह नहीं सकता

36

मुझे क्यों ज्ञान भाता है, उन्हे लक्ष्मी सुहाती है
मेरी माँ शारदा, मुझको बहुलता से बचाती है
मेरी लक्ष्मी, मेरी माता, तेरे अनुबंध, मेरे सम्बन्ध
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही विद्या जताती है

37

मुझे छाया सताती है, वो कछुए से मिलाती है
अगर विश्राम हो थककर, नई ऊर्जा सजाती है
कभी चलना, कभी थकना, कभी रुकना, नहीं थमना
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही जीवन बताती है


4.7.12 - Shillong


i.     मैं इतना सोच सकता हूँ -  (1-6 CLICK HERE)

ii.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)

iii.   मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)

iv.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (17 CLICK HERE)

v.    मैं इतना सोच सकता हूँ -   (18 CLICK HERE)

vi.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (19 CLICK HERE)

vii.  मैं इतना सोच सकता हूँ -  4 (20-22 CLICK HERE)

viii. मैं इतना सोच सकता हूँ -   (23 CLICK HERE)

ix.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (24 CLICK HERE)

x.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)

3 comments:

  1. वाह .. लाजवाब मुक्तक ...

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    1. विजय कुमार जी, आप जो भी सोच सकते हो बड़ा कमाल का लिख भी पाते हो...बहुत बहुत धन्यवाद.

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