Thursday, August 2, 2012

कोकराझार से

कोकराझार से गाड़ी निकलकर आगे बढती है
मैं अपनी सांस को इक पल रुका महसूस करता हूँ

भरे तालाब आंसूं के भरा सब कुछ हरा अब भी
किसी के घर उजड़ते घाव सब  महसूस करता हूँ

ये बोडो भाई मुस्लिम दोस्त सब हैं तो यहीं के ही
सिआसत के लिए गोली चली महसूस करता हूँ

ये बालक जिनके सर से बाप का हो उठ गया साया
किसी तारीख उनके आँख में खूने'लहू महसूस करता हूँ

मुझे उनकी किताबों में अजब से शब्द दिखते हैं
उजाला हो ये कैसी कल्पना मनहूस करता हूँ

कभी बन्दूक से कोई समस्या हल नहीं होती
मैं अपनी आत्मा में बस यही महसूस करता हूँ

तुम सोचो खुद विचारो बैठ कर ढूँढो निदानों को
यह दिल्ली बेरहम है दोस्त यह महसूस करता हूँ

यहाँ जीवों के मूल्यों का महज सौदा ही होता है
ये पैसे बांटकर देखे मजा महसूस करता हूँ

(I am travelling between Lucknow and Guwahati in 12436 - Rajdhani Express... it is 4:30 PM on 30th July 2012....just crossed Kokrajhar railway station and reached New Bongaigaon..This area was in the limelight in the last few days for ethnic violence and displacement of more than 2.5 lac villagers belonging to bodo tribe and muslims (allegedly from Bangladesh).  The prime minister of India, Dr Man Mohan singh visited the camps two days back and announced Rs 300 crore relief... today P Chidambaram (the home minister of India) and LK Advani are visiting)

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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