देखकर
अपनी
सिलने दी ब्लाउज
पहने
पड़ोसन को
महिला खीज रही है
प्रतीक्षा कर रही है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव
इस बार
तैयार रहूंगी मैं
अपने पति-परिवार के साथ
लूटने को
दर्जी की दुकान
उधर
दर्जी
देखकर महंगाई
बाजार-भाव
देखकर
रेडीमेड कपड़ों के
बाज़ार का प्रभाव
खीज रहा है
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव
योजना बना रहा है
स्वयं रखने की
दुकान मे पेट्रोल
मानो
कह रहा हो
जला दो इसे
राख कर दो
सुना है
इस बार
सरकार देगी
अच्छा मुआवज़ा
मोहल्ले भर की
शादियों मे बजाने वाले
ब्रास-बैंड का मालिक
जिसने मोहल्ले भर की
खुशियों में
देखीं अपनी खुशियाँ
जिसने सभी की
खुशियों में
लगाये हों चार चाँद
जिसकी
गाड़ी व घर में
लगा दी गई थी आग
पिछली बार
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
तैयार है
इस बार
लगवाने को आग
अपने घर व गाड़ी में
उसे भी भनक है
दर्जी की तरह
इस बार
अच्छी होगी
मुआवज़े की रकम
अभी निबटा है
निकाय चुनाव
और तैयारी है
लोकसभा चुनाव की
बीमा कंपनी का एजेंट
जो प्रायः
समझाता था
बीमा के
फ़ायदे
व
क़ायदे
कौन पूछता है उसे
सब-कुछ
शांतिपूर्ण होने से
आखिर उसको भी
करना है पूरा
अपना लक्ष्य (टार्गेट)
बचाने को अपनी
बाजारू साख
खीज रहा है वह
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
उधर
सोई हुई लाठियां
आपस मे
बतिया रही हैं
बाँट रहीं हैं
अपने-अपने
पुराने अनुभव
पिछली बार के
इतरा रहीं हैं
अपने-अपने
निशानों पर
धर्मभेद से परे
रक्तभेद से परे
सोई हुई लाठियां
प्रतीक्षा कर रहीं हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
रोज़ कमाई करने वाला
मजदूर
होता है त्रस्त
सांप्रदायिक तनाव के दौरान
उसके घर का चूल्हा
जलता है
कितनो के घर बनाने से
वो
मस्जिद मे
ईंट रखता है
मंदिर में
पत्थर लगाता है
वो
बनाता है रास्ता
सभी के चलने के लिए
धर्म जाति व पंथ से परे
उसे मालूम ही नहीं होता
कौन चलेगा इस सड़क पर
कौन भागेगा
लेकर
लाठियां तलवार व बन्दूक
इस सड़क पर
रोज कमाई करने वाला
मजदूर
हमेशा
कामना करता है
शांति की
सांप्रदायिक सदभाव की
बाकी शेष सब
किसी ना किसी रूप में
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
पिछले दंगों के दौरान
घर मे आनंदित
सरकारी अधिकारी व कर्मचारी
अपने परिवार के साथ
समय बिताते व्यवसायी
पिछले दंगों के उपरान्त
प्रोन्नत हुआ
पत्रकार
प्रोन्नत हुए
पुलिस अधिकारी व कर्मचारी
जीते हुए नेता
सभी
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर
कब होगा सांप्रदायिक तनाव
छोड़कर
केवल उस रोज कमाई करने वाले
मजदूर के
जो सोचता है
(दंगों के दौरान)
आखिर
कब बंद होगा दंगा
और
कब जलेगा
उसके घर का चूल्हा।
(25 जुलाई 2012, 3:15 PM - बरेली - during curfew)
अपनी
सिलने दी ब्लाउज
पहने
पड़ोसन को
महिला खीज रही है
प्रतीक्षा कर रही है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव
इस बार
तैयार रहूंगी मैं
अपने पति-परिवार के साथ
लूटने को
दर्जी की दुकान
उधर
दर्जी
देखकर महंगाई
बाजार-भाव
देखकर
रेडीमेड कपड़ों के
बाज़ार का प्रभाव
खीज रहा है
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव
योजना बना रहा है
स्वयं रखने की
दुकान मे पेट्रोल
मानो
कह रहा हो
जला दो इसे
राख कर दो
सुना है
इस बार
सरकार देगी
अच्छा मुआवज़ा
मोहल्ले भर की
शादियों मे बजाने वाले
ब्रास-बैंड का मालिक
जिसने मोहल्ले भर की
खुशियों में
देखीं अपनी खुशियाँ
जिसने सभी की
खुशियों में
लगाये हों चार चाँद
जिसकी
गाड़ी व घर में
लगा दी गई थी आग
पिछली बार
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
तैयार है
इस बार
लगवाने को आग
अपने घर व गाड़ी में
उसे भी भनक है
दर्जी की तरह
इस बार
अच्छी होगी
मुआवज़े की रकम
अभी निबटा है
निकाय चुनाव
और तैयारी है
लोकसभा चुनाव की
बीमा कंपनी का एजेंट
जो प्रायः
समझाता था
बीमा के
फ़ायदे
व
क़ायदे
कौन पूछता है उसे
सब-कुछ
शांतिपूर्ण होने से
आखिर उसको भी
करना है पूरा
अपना लक्ष्य (टार्गेट)
बचाने को अपनी
बाजारू साख
खीज रहा है वह
प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
उधर
सोई हुई लाठियां
आपस मे
बतिया रही हैं
बाँट रहीं हैं
अपने-अपने
पुराने अनुभव
पिछली बार के
इतरा रहीं हैं
अपने-अपने
निशानों पर
धर्मभेद से परे
रक्तभेद से परे
सोई हुई लाठियां
प्रतीक्षा कर रहीं हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
रोज़ कमाई करने वाला
मजदूर
होता है त्रस्त
सांप्रदायिक तनाव के दौरान
उसके घर का चूल्हा
जलता है
कितनो के घर बनाने से
वो
मस्जिद मे
ईंट रखता है
मंदिर में
पत्थर लगाता है
वो
बनाता है रास्ता
सभी के चलने के लिए
धर्म जाति व पंथ से परे
उसे मालूम ही नहीं होता
कौन चलेगा इस सड़क पर
कौन भागेगा
लेकर
लाठियां तलवार व बन्दूक
इस सड़क पर
रोज कमाई करने वाला
मजदूर
हमेशा
कामना करता है
शांति की
सांप्रदायिक सदभाव की
बाकी शेष सब
किसी ना किसी रूप में
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
पिछले दंगों के दौरान
घर मे आनंदित
सरकारी अधिकारी व कर्मचारी
अपने परिवार के साथ
समय बिताते व्यवसायी
पिछले दंगों के उपरान्त
प्रोन्नत हुआ
पत्रकार
प्रोन्नत हुए
पुलिस अधिकारी व कर्मचारी
जीते हुए नेता
सभी
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर
कब होगा सांप्रदायिक तनाव
छोड़कर
केवल उस रोज कमाई करने वाले
मजदूर के
जो सोचता है
(दंगों के दौरान)
आखिर
कब बंद होगा दंगा
और
कब जलेगा
उसके घर का चूल्हा।
(25 जुलाई 2012, 3:15 PM - बरेली - during curfew)
सांप्रदायिक दंगों का एक नया चेहरा .....
ReplyDeletebahut behatreen...
ReplyDeletevyangyatmak rachna...
For those political and religious leader who instigated riots
ReplyDeleteवो सफलता के नित नए सोपान
चढ़ते गये जिन्दगी में
देकर गोलियां (bluff)
फिर जिन्दगी गोलियों (tablets) से चलाते चलाते
गोलियों (bullets) के सहारे मंजिल पहुच गये
वो लोगो का "मार्ग-दर्शन" करते करते
वो खुद ही मार्ग का दर्शन भूल गये