यकीं होता नहीं, तेरे यार होने का
वो यार क्या जो, वक़्त पर दगा ना दे
विजय कुमार श्रोत्रिय
Friday, July 30, 2010
Saturday, July 24, 2010
Sunday, July 18, 2010
Tuesday, July 13, 2010
Thursday, July 8, 2010
Friday, July 2, 2010
विडम्बना
समाज गिर रहा द्वन्द समान
गाता था ह्रदय करुण सा गान
कभी था भरा जोश प्राणों मे
रह गया शून्य समान वोह जोश
कभी थी शांति घने जंगल मे
पहुँच कर वहां उड़ गए होश
कभी बेहोश, कभी मदहोश
थी घोर विडम्बना लाखों के समान
समाज गिर रहा द्वन्द समान
गाता था ह्रदय करुण सा गान
कभी थी कड़ी जहाँ पर कतार
आज वहां है रिश्वतखोरी
कभी थी रचती बारात श्रद्धा अनुसार
बिक रही आज दहेज़ पर गोरी
कहीं पे दहेज़ कहीं परहेज
कर रहे जामाता गुणगान
समाज गिर रहा द्वन्द समान
गाता था ह्रदय करुण सा गान
यही सब विडम्बना का फल
देखना क्या होता है कल...
<विजय कुमार श्रोत्रिय, १९८३>
(पुवायां सन्देश मे प्रकाशित)
गाता था ह्रदय करुण सा गान
कभी था भरा जोश प्राणों मे
रह गया शून्य समान वोह जोश
कभी थी शांति घने जंगल मे
पहुँच कर वहां उड़ गए होश
कभी बेहोश, कभी मदहोश
थी घोर विडम्बना लाखों के समान
समाज गिर रहा द्वन्द समान
गाता था ह्रदय करुण सा गान
कभी थी कड़ी जहाँ पर कतार
आज वहां है रिश्वतखोरी
कभी थी रचती बारात श्रद्धा अनुसार
बिक रही आज दहेज़ पर गोरी
कहीं पे दहेज़ कहीं परहेज
कर रहे जामाता गुणगान
समाज गिर रहा द्वन्द समान
गाता था ह्रदय करुण सा गान
यही सब विडम्बना का फल
देखना क्या होता है कल...
<विजय कुमार श्रोत्रिय, १९८३>
(पुवायां सन्देश मे प्रकाशित)
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