मेरी कविताएं
Friday, July 30, 2010
यकीं होता नहीं, तेरे यार होने का
वो यार क्या जो, वक़्त पर दगा ना दे
विजय कुमार श्रोत्रिय
3 comments:
मनोज कुमार
July 31, 2010 at 7:23 AM
क्या व्यंग्य है!!
वो यार क्या जो, वक़्त पर दगा ना दे
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संजय भास्कर
July 31, 2010 at 7:50 AM
लाजवाब पंक्तियाँ
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Udan Tashtari
July 31, 2010 at 7:59 AM
बेहतरीन!!
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क्या व्यंग्य है!!
ReplyDeleteवो यार क्या जो, वक़्त पर दगा ना दे
लाजवाब पंक्तियाँ
ReplyDeleteबेहतरीन!!
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