१८.
मेरा बस अर्थ इतना है, सकल उत्पाद झूठा है
अगर धन भूख सच्ची है, मेरा इतिहास झूठा है
सभी हों खुश, सभी सम्रद्ध, तभी सम्पूर्ण संतुष्टि
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं उल्हास झूठा है.
22 Nov 11, shillong 10 AM
अगर धन भूख सच्ची है, मेरा इतिहास झूठा है
सभी हों खुश, सभी सम्रद्ध, तभी सम्पूर्ण संतुष्टि
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं उल्हास झूठा है.
22 Nov 11, shillong 10 AM
बहुत सकारात्मक सोच वाली पंक्तियाँ...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
गंभीर कविता और कविता से उपजा चिंतन भी...
ReplyDeleteअरुण जी... मैं सकल घरेलू उत्पाद संकल्पना मे विश्वास नहीं रखता... मेरे विचार से यह विकास का एकमात्र सूचक नहीं हो सकता। नागरिकों की संतुष्टि व खुशी अधिक महत्वपूर्ण है। पिछले लगभग बारह वर्षों से मैं इसी विषय का अध्ययन कर रहा हूँ। इस पर मेरे विचारों को पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें - http://behappybehealthy.blogspot.in/2010/08/well-being-agenda.html
Deletehttp://vkshro-meri-awaz-suno.blogspot.in/2012/03/whither-india-why-not-focus-on-human.html
विजय
बहुत सुन्दर रचना! आभार...!
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