Tuesday, May 29, 2012

संतुष्टि

१८.
मेरा बस अर्थ इतना है, सकल उत्पाद झूठा है
अगर धन भूख सच्ची है, मेरा इतिहास झूठा है
सभी हों खुश, सभी सम्रद्ध, तभी सम्पूर्ण संतुष्टि
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं उल्हास झूठा है.
22 Nov 11, shillong 10 AM

4 comments:

  1. बहुत सकारात्मक सोच वाली पंक्तियाँ...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. गंभीर कविता और कविता से उपजा चिंतन भी...

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    1. अरुण जी... मैं सकल घरेलू उत्पाद संकल्पना मे विश्वास नहीं रखता... मेरे विचार से यह विकास का एकमात्र सूचक नहीं हो सकता। नागरिकों की संतुष्टि व खुशी अधिक महत्वपूर्ण है। पिछले लगभग बारह वर्षों से मैं इसी विषय का अध्ययन कर रहा हूँ। इस पर मेरे विचारों को पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें - http://behappybehealthy.blogspot.in/2010/08/well-being-agenda.html

      http://vkshro-meri-awaz-suno.blogspot.in/2012/03/whither-india-why-not-focus-on-human.html

      विजय

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