मेरा नेहू, संस्थान महान है
जब जब सूरज उगता है
जब जब चाँद निकलता है
जैसे जैसे, किरण बड़े
दिन के तेवर और चड़े
कल-कल, थल-थल, बूँद गिरें
नदी, झील, तालाब भरें
ऋतुओं का परिवर्तन, एक मेहमान है
मेरा नेहू, संस्थान महान है
बंद रखो मुंह, आंखें खोलो
कर्ण-प्रिय भाषा ही बोलो
आपस मे दीवारें कम हों
हाथ मिलाकर दिल को टटोलो.
जैसा हों बस, हों जाने दो
लेकिन दिल मत खो जाने दो
रिश्तो में इतनी दूरी क्यों
हल कर लूं इस एक प्रश्न को
जीवन का बस एक यही अरमान है
मेरा नेहू, संस्थान महान है.
भिन्न-भिन्न पौधों को सींचें
भिन्न संस्कृतियों को भींचे
हर कोने का प्रतिनिधित्व है
हर इक का अपना अस्तित्व है.
देश का कोना-कोना बोले
समतल बोले, हिमतल बोले
फिर भी भेदभाव क्यों इनमें
मुझको तो लगता है जैसे
मेरा नेहू, इक लघु हिंदुस्तान है
सबका नेहू, संस्थान महान है.
पूरब से पश्चिम को देखा
उत्तर-दक्खिन खींची रेखा
सीमाओं से परे हटाकर
मानवता का दर्पण देखा.
प्यार दिखाकर बैर भी देखा
हंसकर देखा, रोकर देखा
सबकी आँख, भिगोकर देखा
बिन टांगों का जोकर देखा
मिटकर देखा, मिटते देखा
वाक् युद्ध मे, पिटते देखा
जुड़ते देखे, कुड़ते देखे
सही मोड़ पर मुडते देखे
ऐसा देखा, वैसा देखा
बिन मूल्यों का पैसा देखा
छोटे देखे, मोटे देखे
बिन पैंदे के, लोटे देखे
लम्बे देखे, पतले देखे
कुछ सिक्कों पर मचले देखे
रोते देखा, हंसते देखा
जंजालों में, फंसते देखा
खाते देखे, पीते देखे
मर-मर कर भी जीते देखे
झूठे देखे, सच्चे देखे
सबसे प्यारे, बच्चे देखे
बच्चे रोशन करें नाम को
मेरा एक छोटा सा यह अरमान है
उनका नेहू , संस्थान महान है .
नेहू का , नेहुटा देखा
बिन फादर का बेटा देखा
इन्टरनेट का एक्शन देखा
नेहुटा का इलेक्शन देखा.
क्लास पदाते, टीचर देखे
उनके अच्छे, फ्यूचर देखे
कभी नहीं हड़तालें देखीं
नहीं चडाते मालें देखीं.
बिल्डिंग देखी, सड़के देखीं
बिना बात पर, भड़कें देखीं.
इसका देखा, उसका देखा
नेहू ब्रांड का चस्का देखा.
लडते और लड़ाते देखे
पड़ते और पदाते देखे
करते और छिपाते देखे
लिखते और छपाते देखे.
मेरा अनुभव सारा सपना
इसका-उसका, मेरा अपना.
मिलकर रहना, खिलकर रहना
काम करें तो पिलकर रहना.
जीता देखा, हारा देखा
बिन गिनती का पहाड़ा देखा
सब कुछ देखा, कुछ ना देखा
आँख खोलकर सपना देखूं
ऐसी क्या श्रोत्रिय की झूठी शान है
मेरा नेहू , संस्थान महान है ,
उनका नेहू, संस्थान महान है,
सबका नेहू, संस्थान महान है ….
(18th July 2009, House no L 57, nehu campus, Shillong: Meghalaya)
Tomorrow is nehu foundation day and I have been asked to recite a poem, so this composition took birth…. Thanx to all those events, individuals and objects which have inspired me to compose this.
really very insightful expression woven in simple words...
ReplyDeleteIt is heavenly experience going though your poem.
ReplyDeleteNehu hi neh ahi
kya baat hai
बम्बू देखे, तंबू देखे
ReplyDeleteछोटे कद के लम्बू देखे,
वासंठ होते पैंसठ देखा
ReplyDeleteलकड़ी कुर्सी का हठ देखा
बंद द्वार पर अडते देखे
कभी नहीं कुछ पड़ते देखे
मुख्य-द्वार, पर काला देखा
सबसे वडा हवाला देखा