अनुभूति होती है.
इक्कीसवीं सदी के
भारत की.
जब कभी मैं,
सोचता हूँ,
उसका भविष्य,
देखता हूँ,
घरों मे काम करते मजदूर,
होटलों में,
वर्तन धोते बच्चे,
बेघरबार,
मजबूर,
गुन्गुनातें हैं,
'मेरा घर है स्वर्ग से सुंदर'
मेरा ह्रदय,
अवरूध बतलाता है,
उसका मार्ग,
क्योंकि मैं
गांधीबादी विचारधारा
का व्यक्ति हूँ.
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अनुभूति होती है,
इक्कीसवीं सदी के
भारत की,
जब कभी मैं,
देखता हूँ,
यह लिखा हुआ कि,
'देखो सुअर फूल तोड़ रहा है'
मेरे विचार से,
विज्ञान इतनी
तरक्की कर रहा है,
आज फूल,
कल स्कूल,
मात्र पावं की धूल,
मेरी आंखें,
मेरी विचारधारा,
अवरूध बतलाती है
उसका मार्ग,
क्योंकि मैं,
गांधीबादी विचारधारा
का व्यक्ति हूँ..
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अनुभूति होती है,
इक्कीसवीं सदी के
भारत की,
जब कभी मैं,
देखता हूँ,
बस चलाता ड्राईवर,
सिगरेट को मुहं लगाये,
धुआं फेंकता है,
'धूम्रपान निषेध' पर
मेरी आंखें,
अवरूध बतलातीं है,
उसका मार्ग,
क्योंकि मैं,
गांधीबादी विचारधारा
का व्यक्ति हूँ.
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अनुभूति होती है,
इक्कीसवीं सदी के
भारत की,
जब कभी,
कोई बीमा एजेंट,
जीवन को
असुरक्षित बताता है,
अर्थात
जीवन के आगे
प्रश्नचिंह लगाता है,
मेरी विवशता का
लाभ उठाता है,
मेरी विचारधारा,
अवरूध बतलाती है
उसका मार्ग,
क्योंकि मैं
गांधीबादी विचारधारा
का व्यक्ति हूँ.
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अनुभूति होती है,
इक्कीसवीं सदी के
भारत की,
जब कभी
मैं देखता हूँ,
व्यक्तियों को,
मित्रों को,
मंदिर के सामने,
मत्था टेकते,
घंटा हिलाते,
हाथ जोडते,
मंदिर से गायब मूर्तियाँ,
मेरी विवशता को
सहलाती हैं,
दान-पात्र मे पड़ा दान,
मेरे लिए
प्रेरणा बन जाता है,
क्योंकि मैं
गांधीबादी विचारधारा
का व्यक्ति हूँ.
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अनुभूति होती है,
इक्कीसवीं सदी के
भारत की,
जब कभी मैं,
देखता हूँ,
उस कुली को
बजन उठाते, खेती करते
बस कंडक्टर से
लडते-झगडते
शाम को,
मधुशाला के द्वार पर,
मधुबाला के नाम पर,
सोंचता हूँ,
उसका भविष्य,
शोध करवाता है,
अपने विषय पर,
मेरा अध्ययन,
मेरा मस्तिष्ट,
मेरा ह्रदय,
गहनता समझने का
प्रयास करता है,
लेखनी,
थक सी जाती है,
'जियो और जीने दो'
दोहराती है,
समस्त विचारों को
एकत्र बतातीं हैं,
प्रश्न कर जातीं हैं,
क्या! क्या!
तुम गांधीवादी हों,
स्वयं को गांधीवादी कहते हों,
शर्ट और पैंट मे,
सूट और टाई मे,
एक चादर मैली सी,
पैरों मे खडाऊं,
क्या! क्या!!
तुम झूठ कहते हों,
मूर्ख हों,
कष्ट सहते हों,
स्वयं को
गांधीवादी कहते हों,
मेरा सटीक सा उत्तर,
मैं गांधीवादी नहीं,
मेरी विचारधारा
गांधीवादी है,
यहाँ
विचारों की आंधी है,
यहाँ
विचारों की आंधी है...
(२३ दिसम्बर १९८८, तिलक कालोनी, सुभाष नगर, बरेली, उत्तर प्रदेश)
हिंदी साहित्य परिषद्, बरेली द्वारा 1988 में पुरुस्कृत रचना
इतना सब कुछ एक रचना में ..कमाल कर दिया ...आज के सत्य को समेटे ..गागर में सागर भरती एक शानदार प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/
जीवन की विडंबनाओ को दर्शाती के उत्तम रचना...
ReplyDeleteहमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
ReplyDeleteअद्भुत रचना है आपकी...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...आज के हालात की सच्चाई को आपने बहुत सलीके से बेनकाब किया है...मेरी बहुत बहुत बधाई..
ReplyDeleteनीरज
Hey BhaiYa nice poem! realY inspiring.
ReplyDeleteGud Work.....viL luk 4ward 4 yah recent updates.
Manav.