मेरी आँखें, मुझसे बोलीं
मुझ पर तुम विश्वास करो मत
स्वप्नों की तुम आस करो मत
मुझको तुम स्थिर रहने दो
मूकों की भाषा कहने दो
कर्ण प्रिय शब्दों की दुनिया
करवट लेकर आँखें खोलीं
मेरी आँखें, मुझसे बोलीं
जब जब मैने, आँखें खोली
सीधा साधा, गुणा घटाना
क्षण भर को ही, जीवन माना
कंधे झुके, झुके थे मस्तक
नहीं कहीं थी, कोई दस्तक
छुप कर क्यों, वह वार किया था
पहचानो गोली की बोली
मेरी आँखें, मुझसे बोलीं
जब जब मैने, आँखें खोली
उठना, उड़ना, उड़ना, उठना
आसमान पर टिकता घुटना
बिन पंखों के उड़ा जा रहा
हर ऋतु का था, मजा आ रहा
हल्की सी, उसकी आहट ने
पलकों पर की, ठाक-ठिठोली
तब जब मैने, आँखें खोलीं
मेरी आँखें, मुझसे बोलीं
आँखों की भाषा विचित्र है
हर आहट का मानचित्र है
आँखों से वह कह सकते हो
शब्द कोष मे वह सकते हो
बिन अधरों, बिन उच्चारण के
वर्णन उसमे, हर कण कण के
सूखी, गीली या पथरीली
भूरी, धानी, हरी या नीली
आँखों को, आंखे ही समझें
मेरी आंखें, मुझसे बोलीं
जब जब मैने, आंखें खोलीं
मेरी आंखें, मुझसे बोलीं.
(21st April 2005, Shillong : India)
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