Wednesday, April 14, 2010

एक पत्र नवाज शरीफ के नाम

कितने वीर शहीद हुए हैं, कारगील के हाथों मे
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

हम सब सीना तान खडें हैं, बहुत दिनों से नहीं लड़े हैं
शायद तुमको खबर नहीं है, कितने हमने दर्द सहे हैं
हमको अब विश्वास हो गया, देश भक्ति की बातो मे
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

बस लेकर लाहौर चले हम, द्वेष भाव को भुला चले हम
एक नयी शुरुआत करेंगे, ऐसा लेकर ख्वाब चले हम
कायरता का रूप दिखा है, तुमसे शरीफ नवाजो में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

हमने तुमको गले लगाया, तुमने पीछे छुरा दिखाया
द्रास, बटालिक ओर बडे तुम, लेकिन नहीं होश मे आया
दब जायेगी तेरी बोली, जी-८ आवाजों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

पाकिस्तान होश मे आओ, अफगानों पर मत इतराओ
दम कितना है, देखें तो हम, सीने से सीना टकराओ
याद दिला देंगे तुमको हम, दूध छटी का लातों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

प्रथ्वी पर बलिदान हो रहा, जन गण मन का गान हो रहा
बहनों का सिन्दूर, किसी का बेटा भी कुर्बान हो रहा
इक शमशान उपहार मिलेगी, बर्फ घिरी चट्टानों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

अमरीका का प्यार मिला था, चीनो का दुलार मिला था
हँसते खेल रहे भारत को, कश्मीरों का साथ मिला था
सबने दिखा दिए अपने, तेवर तुमको अखबारों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

करूणा बरस रही आँखों से, चारों ओर उपहास हो रहा
घर का भेदी लंका ढावे, ऐसा कुछ आभास हो रहा
कुछ भी कर लो पेशावर में, गिनती है गद्दारों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

अब तो सोच लिया है हमने, यदि युद्ध नहीं लगता है थमने
रक्त की उस गर्मी से देखो, बर्फ नहीं देंगे हम जमने
नहीं देख पाओगे तुम फिर, पाक कहीं इतिहासों में
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

कितने वीर शहीद हुए हैं, कारगील के हाथों मे
इक इक का हम बदला लेंगे, कह दो रिश्ते नातों मे

(2nd July 1999, 4:30 AM, Kanglung: Bhutan)
(dedicated to the martyrs of Kargil War...when we use to watch on TV that every day the dead bodies of our army men was brought in the cover of our national flag... it was a terrible time, for their parents and near and dear ones.... as well for us indians who were in Bhutan, we use to discuss and pay homage to our fellow friends fighting for our country on the frontiers....I composed this poem and shared with many of my friends there....)

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