Wednesday, April 14, 2010

अपेक्षा

नहीं अपेक्षा, नहीं प्रतीक्षा
नहीं नहीं, इक सपना था
मैं अपना था, केवल अपना
और न कोई, अपना था

आंखें प्यासी, चेहरा झुलसा
और ऋतु ने, कहर किया
डर लगता है, उस प्रकाश से
कभी नहीं जो, अपना था

जीवित हूँ, पर मृत से बदतर
दंड मिला, किन कृत्यों का
आशाओं की बगिया मे ही
जीवन मेरा दफना था

मेरे सारे सुख, तुम ले लो
अपने सब दुःख, मुझको दे दो
तुम खुश हो, बस यही अपेक्षा
एक यही, बस सपना था

तेरे आंसूं, मेरी आंखें
दर्द कभी मत तुम सहना
ईश्वर, भाग्य, नहीं कुछ भी सच
मात्र कर्म ही, अपना था... 

(२२ जुलाई १९९९: १०:३० रात्रि: घर संख्या २९, शेरुब्त्से कॉलेज, कान्ग्लुंग: भूटान)

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