Wednesday, May 5, 2010

नाक

नाक कभी उठती है, कभी झुकती है
नाक कभी रूकती है, कभी बहती है
नाक कभी लाल होती है, कभी पीली होती है
नाक कभी सूखती है, कभी गीली होती है.

नाक के नीचे मुहं होता है,
जो अधिकतर चुप, सोता है
नाक के ऊपर दो आंखे होती हैं
जो अक्सर बंद, सोतीं हैं

जिसका मुहं बंद रहता है,
और आँख सोती है
मित्रों ऐसों की नाक
शूर्पनखा की होती है....

2 comments:

  1. naak bachaana izzat hai
    naak katana zillat hai
    naak hi chehre ki sundarta hai
    naak bina insaan kaisa lagta hai
    socho yaaro naak ko rakhna kitna mushkil
    par naak bachaana hi zaroori hai.
    dear vjai
    your poem on the importance of naak has been very realistic and it is 100 % that it is an important organ of the human body, physically, soically and philosophically.
    thanks
    sadruddin

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  2. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति, धन्यवाद!

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