काश! मेरा ह्रदय होता आप सा
सांझ मेरी गूंजती अटखेलियों में
रात भी होती नई नववेलियों में
स्वप्न कर देते तभी कुछ चिन्ह अंकित
सुबह को खेलता मैं बहेलियों में
दिन प्रति, प्रति-दिन करूँ परिहास सा
काश! मेरा ह्रदय होता आप सा
जब कभी मेरा करें स्पर्श वो
मैने सोचा, वो नहीं, वो, वो, नहीं वो
याद किस-किस की करूँ मस्तिष्ट में
कोई आता कोई जाता शाम को
मेरा हर इक मोड़ करता हादसा
काश! मेरा ह्रदय होता आप सा
मैने सोचा भाव कुछ बढने लगें हैं
क्या कहूं अब शब्द भी लड़ने लगे हैं
माँ बहन मे अब कोई अंतर नहीं है
देह व्यापारों के पर लगने लगे हैं
हर नया महबूब करता स्वांग सा
काश! मेरा ह्रदय होता आप सा
आपका क्या है कोई मिल जाएगा
पर ना अब कोई मेरे घर आएगा
मेरे माथे पर लगी है मोहर जो
उसको कोई आपसा सहलाएगा
सहन करने का मुझे अभ्यास सा
काश! मेरा ह्रदय होता आप सा
(२ मार्च १९८८, तिलक कालोनी, सुभाष नगर, बरेली, उत्तरप्रदेश)
काश! मेरा ह्रदय होता आप सा, वाह! बेहतरीन पंक्तियाँ!
ReplyDeleteसहन करने का मुझे अभ्यास सा, खूबसूरत है
ReplyDelete