वो जो कुछ कुछ, चुप रहते हैं
या जो अधिक खरा कहते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
पानी बरसे, आंधी आये
नेहरु आये, गाँधी आये
निर्भर नहीं किसी पर हो जो
धारा मे अपनी बहते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
शोक हुआ बादल मंडराए
कौए, चील, गिद्ध भी गायें
हर ऋतु के आने जाने का
जो सार्थक अध्ययन करते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
सोना उठना, उठना सोना
अश्रु बिना जिनका हो रोना
आंसूं का खारापन पीकर
अपना जो जीना जीते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
क्या कहना और किसको कहना
क्यों कहना कैसे चुप रहना
शोर मचा हल्ला करते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
जीवन का चलना कपि बनकर
नहीं लिए सबके कर, कर पर
अपना जो जपना कहते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं.
देशभक्ति का पाठ पढाकर
द्वेष भक्ति स्वयं अपनाकर
जन गण मन पर चुप रहते हैं
उनसे लोग खफा रहते हैं...
(१८ सितम्बर, १९९२, ११:२० बजे सुबह, हर्मंन माइनर स्कूल, भीमताल, नैनीताल, उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल)
वाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
ReplyDelete..आभार.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बेहतरीन कविता है, विजय भाई| "पानी बरसे, आंधी आये - नेहरु आये, गाँधी आये - निर्भर नहीं किसी पर हो जो"... आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव की प्रेरणा से सराबोर ये पंक्तियाँ आपके जैसे किसी शिक्षक से ही मिल सकती हैं!
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