शोर बहुत है
घर घर चर्चा है
शायद
कहीं कुछ हो गया है
या फिर
किसी का कुछ खो गया है
तलाश जारी है मगर......
आमने- सामने खडें है
दोनों प्रतिध्वंदी
उनको नहीं मालूम
कहाँ क्या हुआ
किसने किया
क्यों हुआ
कैसे हुआ
किसकी दुआ
किसकी बद्द्दुआ
आखिर ऐसा तो
कुछ नहीं हुआ.
किसी को
फलता-फूलता देखा नहीं जा सकता
यदि जा सकता है देखा
तो फिर कटी निगाह से
जो दिखाई ना दे
कहीं से
प्रायः जैसा होता है.
कौन कहता है कि
कहीं कुछ हुआ है.
प्रयास कर रहे हैं
दूर रहें
समाचार पत्र पर डाले निगाह
और समझें
कहाँ क्या हुआ.
शोर क्यों है
कारण क्या है.
आग हर घर मे
क्यों है
इसकी लपटें
कहीं बर्बाद ना कर दें
मेरा आशियाना
कृपया मात्र इतना बतलाना
अब मुझे किधर चाहिए जाना
पश्चिम या पूरब
दक्षिण या उत्तर
असमंजस
आप रहेंगे निरुत्तर
यदि ना हो सका प्रयास
चुप रहने का
फिर लांघ जायेगा सीमा
उसका 'मैं' दिखायेगा
अपनी औकात
किसी की समझ में नहीं आएगी
कोई बात
क्योंकि देखा यह गया है
कि शोर की
परिणति होती है
शांति से
सन्नाटे से
धीरे...
(२३ नवम्बर, १९९१, १०:३० सुबह, हर्मंन माइनर स्कूल, भीमताल, नैनीताल, उत्तरप्रदेश - उत्तरांचल)
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